'फूल गईल सारे फूल, सरहुल दिना आबे गुईयाँ'
कल है झारखंड का प्रकृति पर्व सरहुल.....मांदर और ढोल की थाप पर झूमेंगे युवा......
चारों तरफ साल के वृक्ष में फूल आए हैं..मदमाते सुगंध से प्रकृति झूम रही है....सरहुल 'साल' के फूलने का ही पर्व है्.....
इस दिन सखुआ या सरई के फूलों से पूजा की जाती है....यानी प्रकृति की पूजा....
प्रकृति का आनंद लेना हो अभी साल, पलाश, सेमल, महुआ के फूल और सुगंध में डूब जाएं....एक दिन जंगल के वसंत को जिए....
हम भी सरहुल मनाएं...झूमर-नृत्य में खो जाए.....
जिंदगी यही खिलती है...जंगलों में...एक बार देखिए तो सही...
my photography....साल वृक्ष पर खिले फूल....
8 comments:
हर ऋतु का अपना रंग-रूप और गंध है, पर
इन नगरों को प्रकृति से जुड़ने का समय कहाँ!
सुंदर रचना...
आपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 03/04/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...
सुंदर रचना...
आपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 03/04/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...
जिंदगी यही खिलती है...जंगलों में...एक बार देखिए तो सही...sahi kaha
सरहुल पर्व झारखंड की सीमा से लगे छत्तीसगढ़ के सरगुजा में भी मनाया जाता है।
बढ़िया प्रस्तुति व रचना , रश्मि जी धन्यवाद !
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इन पर्वों को याद करना..याद दिलाना..जितना हो सके सहेजना जरूरी है।..सुंदर पोस्ट।
prakriti ki pooja hamare dil ko umangon se sarabor kar deti hai sundar rachna ...
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