Thursday, April 24, 2014

मैंने जोग ले लि‍या.......


धोरों खि‍ला कास – फूल”- (भाग –VII)
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फरवरी माह के जाते हुए ठंढ की बात है.....शाम ढलने लगी थी....परछत्‍ते पर पसरी धूप सरक कर नीचे आ रही था.....नीला आसमान शांत....दीवार पर तीन कबूतर एक दूसरे को चोंच मारने
 में लगे थे......समझ नहीं आ रहा था कि वो झगड़ रहे हैं या खेल रहे है।

सुहाती सी धूप बदन को छू रही थी। हल्‍का गुनगुना अहसास मन के खालीपन को भरने लगा। मन में उतरी उदासी कुलबुला रही थी बाहर नि‍कलने को मगर कोई जरि‍या नहीं मि‍ल रहा था.....यूं लग रहा था जैसे उदासी इस पल के लि‍ए पहले से तय थी, कि इस वक्‍त...उसे जाना नहीं है कहीं दूर तुमसे.....

कानों में तभी गूंजा.. उसका कहा......मैंने जोग ले लि‍या....अब जोगी हो गया हूं मैं....। आंखों में सवाल था मगर जुबां चुप थी मेरी तब। जानती थी...खुद ही कहेगा वो....कहा उसने

मेरी आंखों में अब तेरे सि‍वा कोई नहीं....कोई एक ऐसा चेहरा नहीं दुनि‍यां में जि‍से देखने का दि‍ल करे। अब तो मैं कि‍सी को देखकर भी नहीं देखता। मुझे हर तरफ तुम नजर आते हो....और मैं कि‍सी को देखना भी नहीं चाहता। मैं दुनि‍यां से उदासीन हूं...इसलि‍ए खुद को जोगी कह रहा हूं।

मैं हंस पड़ी.....कि‍सी के प्‍यार में आकंठ डूबे हो और खुद को जोगी कहते हो...कहा उसने......जो ईश्‍वर में रम जाता है....सि‍वा उसके कुछ नहीं नजर आता तो दुनि‍या उसे जोगी कहती है। मैं भी सिर्फ तुममें डूबा हूं। जोग लगा लि‍या मैंने। मैंने सब कुछ माना तुम्‍हें....अब बताओ तुम्‍हीं.... ऐसे इंसान को क्‍या कहते हैं।

मैं चुप रही। सच ही तो कहा था उस दि‍न उसने। वो वाकई डूब चुका है..प्‍यार में....और तृप्‍त है इस अहसास के साथ। अब भला क्‍या जाए उसे....

इस याद ने सुकून दि‍या मुझे...अपने स्‍पेशल होने का अहसास हुआ। हालांकि धूप में अब कोई गर्मी नहीं थी....हल्‍की सी ठंढ़ ने जकड़ना शुरू कि‍या.....मगर उसके प्‍यार के अहसास ने मुझे यूं सहलाया जैसे कोमल फूल की पंखुडि‍यों को कोई इस एहति‍यात से छुए कि छू भी लूं और दाग न पड़े कोई।

अब शाम ढल चुकी है। अजान की आवाज और शाम ने कहा मुझसे....उतरो छत से...सुनहली धूप को आंखों में भरो और उदासी उतार फेंको......कोई है इस दुनि‍यां में जो तुम्‍हें बेइंतहा प्‍यार करता है।


my photography ....पलाश के फूल

3 comments:

Onkar said...

सुन्दर लेखन

डॉ. जेन्नी शबनम said...

इसका पहले वाला भाग तो न पढी, लेकिन इतना ही अपने आप में सम्पूर्ण लगा. सुन्दर लेखन के लिए बधाई.

dr.mahendrag said...

बहुत सुन्दर