धोरों खिला कास – फूल”- (भाग –V)
==========================
आज देखा तुम्हें...उदास से थे। लगा....साथ होकर भी नहीं....किसी ऐसी गली से गुजर आए हो जहां मेरा कोई दखल नहीं। मैं बेहद अपरिचित हूं.....उनसे..तुम्हारे मन से....और गुजरे कल से
हालांकि मैंने मन पढ़ लिया है तुम्हारा.....मगर इस बात का तुम्हें पता नहीं। तुम अब भी झिझकते हो मुझसे कुछ कहने से....खुलने से। मगर तुम्हारी आंखें हैं उस चातक सी....जिसे बस एक बूंद की आस है....तृप्ति के लिए.....नहीं....उसे समंदर नहीं चाहिए....न सावन की झड़ी....एक बूंद ही काफी है....मन भिगोने को.....फिर आंखें गंगा बन जाएंगी....
बहुत तन्हा थे तुम....या मुझे लगे पता नहीं....तुम खुद से लड़ रहे थे या किस्मत से....पता नहीं.....मैंने पूछा...सुकून किसके दामन में छोड़ आए हो...
बेतरह उदास थी तुम्हारी आवाज....कहा तुमने...आवारा परिंदों के नसीब में घर नहीं होता....कोई दामन नहीं होता जहां आंसू छोड़ आए कोई..
मैं हैरत में डूब गई....ये तुम थे....एक नया रूप था तुम्हारा....उदास....मैंने अब तक तुम्हें कुछ अलग सा पाया था.....सब खिला....फूल सा.....
मैंने हंसते हुए कहा...तुम आवारा परिंदे...मैं बहती झरना.....सिवा इसके न कोई न मेल है अपना....कि हम बंधते नहीं......रास्ते अलग हैं....फितरत मगर एक।
एकदम से बदल गए तुम....तुम्हारी आंखे...आवाज.....उदासियों में डूबे से लगने वाले तुम...एकदम से ठहरी आवाज में कहा.....मैं नदी हूं......बहता हूं मगर तुम्हें थाम सकता हूं.....इतनी ताकत है मुझमें......तुम झरना बन बह नहीं सकती कहीं भी.....
मैं हतप्रभ......ये क्या कह दिया तुमने........हां...मन ही मन समझते थे हम...हमारे मनोभाव...मगर शब्दों में यूं उतारना.....न मेरे बस की बात थी न तुम्हारे......मगर तुम.....
कह बैठे वो...जो दिल में छुपा रखा था......समझ गई मैं.....कि मेरी आंखें पढ़ ली तुमने......मौन स्वीकृति ने ही ये ताकत बख्शी तुम्हें...... वरना.....यूं खुद में समेटने की बात न करते तुम कभी...
बात हंसी में उड़ गई....मगर अपनी खुश्बू छोड़ गई....मन में गुदगुदाहट थी.....प्यार की आहट थी......जीवन बदलने वाला था.....बस वो शब्द कहने थे......जो कहना आसान नहीं होता....किसी के लिए भी....जो प्रेम में डूबा होता है......
my photography ...
1 comment:
.बस वो शब्द कहने थे......जो कहना आसान नहीं होता....किसी के लिए भी....जो प्रेम में डूबा होता है......
बहुत सुन्दर रश्मिजी वाकई कहने की चाह होते हुए भी इंसान नहीं कह पाता क्योंकि ...............प्रेम कहने नहीं देता बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
Post a Comment