Thursday, March 20, 2014

ओ री गौरैया (..वि‍श्‍व गौरैया दि‍वस पर..)


ओ री गौरैया
क्‍यों नहीं गाती अब तुम
मौसम के गीत
क्‍यों नहीं फुदकती
मेरे घर-आंगन में
क्‍यों नहीं करती शोर
झुंड के झुंड बैठ बाजू वाले
पीपल की डाल पर

ओ री चि‍ड़ी
क्‍या तेरे घोंसले पर भी है
कि‍सी काले बि‍ल्‍ले की
बुरी नजर
कि‍सी के आंगन
कि‍सी की छत पर
नहीं है तेरे लि‍ए
थोड़ी सी भी जगह

ओ री चराई पाखी
कहां गुम गई तेरी चीं-चीं
क्‍यों नहीं चुगती अब तू
इन हाथों से दाना
क्‍यों नहीं गाती
भोर में तू अपना गाना

ओ री छोटी चि‍ड़ि‍या
अब हैं पक्‍के मकान सारे
कहां बनाएगी तू घोंसला
चोंच में दबाकर
कहां ले जाएगी ति‍नका

ओ री मेरी गौरैया
रूठ न जाना, खो न जाना
आओ न
मेरे आंगन वाले आइने पर
अपनी शक्‍ल देख
फि‍र से चोंच लड़ाना
मेरे बच्‍चों को भी सि‍खा देना
संग-संग चहचहाना...........

18 मार्च 2018 को प्रभात खबर 'सुरभि‍' में प्रकाशि‍त 

5 comments:

  1. सुंदर हृदयस्पर्शी भाव ...

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  2. सुन्दर पर्यावरण सचेत रचना :

    ओ री चराई पाखी
    कहां गुम गई तेरी चीं-चीं
    क्‍यों नहीं चुगती अब तू
    इन हाथों से दाना
    क्‍यों नहीं गाती
    भोर में तू अपना गाना

    सबसे पहले पक्षी सुध लेते हैं टूटे गिरते मरते पर्यावरण पारि-तंत्रों तंत्रों की।

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (21-03-2014) को "उपवन लगे रिझाने" (चर्चा मंच-1558) में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. प्यारी गौरैया सदा चहचहाती रहें। सादर।।

    नई कड़ियाँ : विश्व किस्सागोई दिवस ( World Storytelling Day )

    विश्व गौरैया दिवस

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  5. वाह ! बहुत ही मर्मस्पर्शी एवं संवेदनशील रचना ! गौरैया तो हर बगिया की जान भी है और शान भी ! इसका संरक्षण हमारा सर्वोपरि कर्तव्य होना चाहिये !

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