Wednesday, March 5, 2014

झरबेरि‍यां....


इस बार
झरबेरि‍यों के
कच्‍चे-पक्‍के बेर में है
बड़ा अनूठा स्‍वाद
जैसे
प्‍यार है हमारा

कच्‍चा सा
यादें मीठी सी
और दूरि‍यां
लगती खट़टी सी
है तेरा वादा
भी
खटमि‍ठ सा
सुनो
हमारे प्‍यार को
रहने देना
अधपका ही
क्‍योंकि
कच्‍चा कसैला होता है
पका गि‍र जाता है
अधपका ही
आंधि‍यों से लड़
पाता है......



आंगन कि‍नारे की झरबेरि‍यां.....

11 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत प्यारी खटमिट्ठी रचना..

अनु

सुशील कुमार जोशी said...

वाह !

सुशील कुमार जोशी said...

वाह !

Asha Lata Saxena said...

बहुत शानदार |

Neeraj Neer said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति KAVYASUDHA ( काव्यसुधा )

Kailash Sharma said...

लाज़वाब अहसास और उनकी प्रभावी अभिव्यक्ति...

Tamasha-E-Zindagi said...

बहुत सुन्दर

कविता रावत said...

बहुत बढ़िया झरबेरि‍यों जैसी रचना ...

Abhi said...

कच्‍चा कसैला होता है
पका गि‍र जाता है
अधपका ही
आंधि‍यों से लड़
पाता है......

in panktiyo ko padh ke bahut achha ehshas hua. Aapne is vichar ko kya shabd diye hai.

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। । होली की हार्दिक बधाई।

Aditi Poonam said...

बहुत प्यार भरी खट्टी-मीठी सी रचना .....