सुबह नींद से भरी
कसकसाती आंखों
और
अधमुंदी पलकों के बीच
देखा मैंने
मद़धम सी शीतल हवा
पहले
चीड़ों से उलझी
फिर झपक कर उतरी
'साल' के सीने पर
जा ठहरी....
इधर
इठलाता सेमल
झूम रहा था
मुक्त गगन में
हो निर्वसन..टह-टह लाल
प्रगाढ़
आलिंगन के
मादक अहसास से
झूमने लगा साल
शीतल बयार को पा
इतरा रहा था 'साल'
पांच पत्तियों वाले
सेमल का भी
कुछ ऐसा ही था हाल
तभी
आवारा पवन के झोंके ने
सब बिखरा दिया
मुलायम पीली धूप
ठहरी थी जिस
शाख की फुनगी पर
झर-झर कर गिरी पत्तियां
पीली पत्तियां
हवाओं ने भी
किया कमाल
पटी है धरती देखो
पत्तियों और फूलों से
जमीं पर फूल बिखरे हैं लाल-लाल
4 comments:
एक उपेक्षित वन वृक्ष के सौंदर्य के रूप को उजागर कर के प्रकृति-शोभा से छायावाद का स्वरूप उकेरा है !
एक उपेक्षित वन वृक्ष के सौंदर्य के रूप को उजागर कर के प्रकृति-शोभा से छायावाद का स्वरूप उकेरा है !
bahut sundar rachna ...
बहुत खूब..
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