कल वेलेंटाइन डे था....यानी प्रेम दिवस..युवाओं के इजहार का दिन..प्यार का दिन....सड़क पर बहुत चहल-पहल थी...युवा जोड़े तो नजर नहीं आए क्योंकि शिवसेना..नारी सेना के खौफ ने उन्हें आज के दिन खुलकर मिलने नहीं दिया....
मगर हां..नए शादीशुदा जोड़े खूब उत्साह से भरे नजर आए....मॉल में...थियेटर में कल रिलीज फिल्म के गाने तूने मारी इंट्रीयां और दिल में बजी घंटियां.....टन...टन...टन...पर
कल से मौसम ने भी रंग बदला है....जाती हुई ठंड ने पलटकर देखा.....जैसे कह रहा हो...अभी रूकूं जरा....मैं भी उठा लूं इस रंगीन समां का आनंद...
दिन भर के कुहासे के बाद जब शाम ढली तो आकाश के चांद पर बरबस नजर टिकी....पूरा..गोल..नारंगी सा रंग लिए चांद......ठहरी नजरों ने यकायक कुछ याद दिलाया मुझे......आज तो माघ पूर्णिमा है... और प्रेम दिवस भी...याद आई फिल्म....'दिल तो पागल है' का दृश्य जब माधुरी दीक्षित अपनी एक सहेली को बता रही थी वेलेंटाइन डे का मतलब.....जो तुम्हें दुनियां में सबसे प्यारा लगता है वो तुम्हारा वेलैंटाइन होता है। और आज के दिन वो तुमसे अपने प्यार का इजहार करेगा। आज के दिन ही वो सोलमेट मिलता है....जो आपके लिए बना होता है.....और इस दिन पूर्णिमा हो तो जरूर मिलेगा आपका मनचाहा......
यकीनन उस दृश्य ने मन में चाह पैदा कर दी थी .......किसी सोलमेट के मिलने की....
तब ये चलन नया-नया सा था....आज की तरह इसे दिवस के रूप में जोरदार तरीके से नहीं मनाया जाता
था......तब कॉलेज की सहेलियां कहती....आज के दिन किसी लड़के का दिया लाल गुलाब न ले लेना......वरना प्रेम कुबूल करना होगा....मन में एक गुदगुदी सी होती....और सोलमेट की चाह पलने लगती युवा मनों में....
खैर सोलमेट मिलना ख्वाब सा होता है.....तब नहीं समझ आता था......पर इतने बरस बाद पूर्णिमा और वेलेंटाइन डे को एक दिन पाकर एक पुराना ख्वाब आंखों में मचल उठा था....
मगर ख्वाब तो ख्वाब होते हैं...जमीं पर उतरते हैं तो भी उतने खूबसूरत नहीं लगते...इधर बेईमान मौसम के जलवे से शहर भीगा-भीगा है.....
और मन यादों की गलियों में टहल रहा है......मौसम को दुप्पटे में बांधकर...
मेरे बागीचे का लाल गुलाब.......
4 comments:
मोसम ने और वेलेंटाइन डे ने मिलकर न जाने
कितनी स्मृतियाँ ताज़ा कर दीं .....
आपकी प्रविष्टि् कल रविवार (16-02-2014) को "वही वो हैं वही हम हैं...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1525" पर भी रहेगी...!!!
- धन्यवाद
achchhi aur manoranjak post ke liye aabhar
मन है यादों के जंगल में भटक जाये तो न जेन कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है.विशेष दिन और मौसम कुछ ज्यादा ही बैचेन कर देते हैं.खूबसूरत कृति
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