शाम है....अजान भी और मंदिर में रोशन दिये की झिलमिलाहट बाहर के अंधियारे के साथ मिलकर खेला कर रही है
दिसंबर की सर्द शाम....आकाश में चांद....तुम सा ही दूर बैठा है.....
रातरानी की खुश्बू मन मोहती है.....देखती हूं अचानक से चारों तरफ धुंध ही धुंध....बिजली की रौशनी के इर्द-गिर्द कुहासे ने घेरा बना दिया है.....
उदास मन कुहासे की गिरफ़्त में और उदास होने को है कि अचानक जूड़े में बंधे बाल खुलकर बिखर जाते हैं....अनायास
बस एक ख्याल कि तुमने हाथ लगाया होगा....तभी बिखरे हैं गेसु.....खुलकर..ढलककर....
अब रातरानी की खुश्बू मेरे होठों में उतर आई है.......महसूस करने के लिए छूना तो कतई जरूरी नहीं......
तस्वीर---साभार गूगल
2 comments:
बढ़िया प्रस्तुति-
आभार आदरणीया-
कोमल भावनाओं कि सुन्दर अभिव्यक्ति.......
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