Sunday, November 17, 2013

कार्तिक पूरनमासी की रात


आज
कार्तिक पूरनमासी की रात
पूरा चांद
है सफेद बादलों की ओट में
और मैं
देव-दीपावली को गंगा घाट पर
रौशन कर
आस का दि‍या, वि‍श्‍वास का दि‍या
करबदृध प्रार्थना में लीन हूं
और मैं बहुत खुश हूं.....

खुश हूं कि गंगा को छूकर
आती ठंढी हवाओं में
उन सांसों की आवाज
अब भी है शामि‍ल
जो सरगम बन मेरी सांसों में
रहा करती  थी
मगर इन दि‍नों
खामोशि‍यों के बर्फ तले दबकर
एक झील बन जम गई है
फि‍र भी मैं बहुत खुश हूं....

खुश हूं कि गंगा की मचलती लहरों पर
वक्‍त की हवाओं से लड़कर
मेरे वि‍श्‍वास का दि‍या
जगमगा रहा है
दशाश्‍वमेध घाट पर
है कई उंचे हाथों के स्‍तंभ
रौशनी, फूल और आस्‍था का संगम
और
हाथों में है अर्घ्‍य के लि‍ए
पावन गंगा का जल
साक्षी है दशों दि‍शाएं कि
मेरे मानस में साथ हो तुम हरदम
आज
कार्तिक पूरनमासी की रात
मैं समर्पित करती हूं खुद को...तुम्‍हें
और ...मैं बहुत खुश हूं....

2 comments:

Naveen Mani Tripathi said...

wah bahut hi sundar aur prabhavshali rachana

Rajesh Kumari said...

आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार१९/११/१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है।