Wednesday, November 13, 2013

नवंबर के इस सर्द दि‍न में.....


कभी नहीं हुआ ऐसा.....रस्‍ते पर टि‍काए नजर...इंतजार में दुख गई हों आंखें ..मगर तुम नहीं आए

उषा की अंगड़ाइयों के बाद अब सर चढ़ आया है सूरज...ओस की दीवार चीरकर नर्म धूप ने छत की मुंडेर पर डेरा जमा लि‍या है..मगर मन का आंगन सूना है....

न इतने बेपरवाह हो तुम न ही नि‍ष्‍ठुर....एक दि‍न भी नहीं ऐसा नहीं गुजरा जब तुम्‍हारी आवाज की लरजि़श से मेरे दि‍ल के तार झंकृत न हुए हों......मेरे होठों से भले ही एक शब्‍द न नि‍कला हो कभी, मेरा दि‍ल जानता है कि उस एक आवाज से मन के फूल ऐसे खि‍लते हैं जैसे कि ये मन फूलों की घाटी हो....

मैं आनंदि‍त होती हूं....सुनकर तुम्‍हें...गर्वित हूं....पाकर तुम्‍हें...कृतज्ञ हूं....उस ईश्‍वर की जि‍सने तुम्‍हें देकर मेरी जिंदगी को दि‍शा दी.....मीठी भावनाओं की लड़ि‍यों वाला सतलड़ा हार दे दि‍या हो.....जो नि‍श्‍चय ही नसीबवालों को मि‍लता है.....

देर होती है...मगर अबेर हो गई अब तो....पलक-पांवड़े बि‍छाए खड़ी हूं नवंबर के इस सर्द दि‍न में उस राह में....जहां से तुम आते हो...

आओगे तुम.....इसका यकीन है मुझे....पर अब सहन नहीं होता इंतजार....बस एक बार....आ भी जाओ....


तस्‍वीर--साभार गूगल

3 comments:

अजय कुमार झा said...

वाह ! अर्पित समर्पित सी बेमिसाल पोस्ट..बहुत ही सुंदर ।

विभूति" said...

खुबसूरत अभिवयक्ति..

मेरा मन पंछी सा said...

भावभीनी .कोमल रचना...