Friday, October 11, 2013

मेरी इबादत.....


करना है
खुद को अब
तुममें समाहि‍त
कि
प्‍यार में तुम जीते
और मैं हारी

हर लि‍या तुमने
मेरा
सारा अहंकार
भर दि‍या मुझमे
प्रेम का असीम मार्धुय

मैं बन रही हूं वैसी
जैसा चाहते हो
तुम मुझे देखना
क्‍योंकि
ये इश्‍क की है चाहत
और अब
मेरी इबादत.....

तस्‍वीर..साभार गूगल

15 comments:

Unknown said...

प्यार भरी सुंदर रचना |

मेरी नई रचना :- मेरी चाहत

Parul Chandra said...

इसी को प्यार कहते हैं... बहुत सुन्दर

राजीव कुमार झा said...

बहुत सुंदर रचना.

विभूति" said...

भावो का सुन्दर समायोजन......

अरुन अनन्त said...

नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (13-10-2013) के चर्चामंच - 1397 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

Anonymous said...

आपने लिखा....हमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {रविवार} 13/10/2013 को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल – अंकः 024 पर लिंक की गयी है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें। सादर ....ललित चाहार

Vandana Ramasingh said...

हर लि‍या तुमने
मेरा
सारा अहंकार
भर दि‍या मुझमे
प्रेम का असीम माधुर्य

बहुत सुन्दर भाव

Anonymous said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति
और हमारी तरफ से दशहरा की हार्दिक शुभकामनायें

How to remove auto "Read more" option from new blog template

vandana gupta said...

bahut sundar rachna

दिगम्बर नासवा said...

प्यार में कैसी हार कैसी जीत ...

nayee dunia said...

बहुत सुन्दर.......

kavita verma said...

sundar rachana ..

Onkar said...

सुन्दर प्रस्तुति

कालीपद "प्रसाद" said...

ये इश्‍क की है चाहत
और अब
मेरी इबादत.
बहुत सुन्दर !
अभी अभी महिषासुर बध (भाग -१ )!

virendra sharma said...

चखो पूरा चखो समर्पण का सुख अहंकार (अज्ञान )फोड़ता और तोड़ता ही है दूसरे को नहीं अन्दर से अपने ही" स्व" को।होने को बीइंग को। आत्मन को।


करना है
खुद को अब
तुममें समाहि‍त
कि
प्‍यार में तुम जीते
और मैं हारी

हर लि‍या तुमने
मेरा
सारा अहंकार
भर दि‍या मुझमे
प्रेम का असीम मार्धुय

मैं बन रही हूं वैसी
जैसा चाहते हो
तुम मुझे देखना
क्‍योंकि
ये इश्‍क की है चाहत
और अब
मेरी इबादत.....