Thursday, October 3, 2013

मेरे वजूद की तरह..

जब तुम कहते रहते हो
लगातार
तो जी करता है
कहूं
बस करो, अब चुप भी रहो

और जब
थककर तुम
क्‍लांत पड़ जाते हो
बंद कर आंखें
सोने का उपक्रम करते हो

जी चाहता है
फि‍र सुनूं वो ही आवाज
गुंजता रहता है
कानों में
तुम्‍हारे स्‍वर का
आरोह -अवरोह

प्रतिध्‍वनि‍त होता है
मेरे ही नाम का उच्‍चारण
जो अपनी बारम्‍बरता के कारण
लि‍पट गया है
मेरे ही 'औरा' से
मेरे वजूद की तरह......


तस्‍वीर.....दमन के अरेबि‍यन समुद्र की 

5 comments:

Dr ajay yadav said...

bahut khub

Parul Chandra said...

बहुत सुन्दर भाव..

मेरा मन पंछी सा said...

कोमल भावसिक्त सुन्दर रचना...
:-)

dr.mahendrag said...

वजूद ही वजूद की तलाश में,बहुत ही सुन्दर भाव के साथ रचित कृति

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर !
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