Thursday, September 5, 2013

'गुरू जी मारे धम-धम..विद्या आए छम-छम'



वो भूगोल पढ़ाती थीं......यही बरसात के दि‍न थे...हल्‍की-हल्‍की बारि‍श..
स्‍कूल का आंगन जि‍से हम प्रांगण कहते थे...भीगा था, कीचड़ भी। अचानक वो मि‍स जि‍न्‍हें स्‍कूल में पढ़नेवाली लड़कि‍यां 'दीदीमनी' कहती थीं, उन्‍हें ही क्‍यों, सारी शि‍क्षि‍काओं को दीदीमनी ही कहा जाता था, ने चुपके से बुलाया .....और पूछा....
तुम्‍हारे घर के चूल्‍हे में आग तो होगी ? मैंने जवाब दि‍या...कहां होगा दीदीमनी..खाना तो कब का बन गया होगा। अब सिर्फ राख बचा होगा। उन्‍होंने कहा...अरे..गरम तो होगा ही..और अपने बैग से नि‍कालकर एक मकई हाथ में थमाया....कहा, दौड़ के जाओ..राख में अच्‍छी तरह से ढांपकर आना। एक घंटे में पक जाएगा..तब ले आना। बड़ा स्‍वाद लगता है राख में पके मकई का....। शि‍क्षि‍का की बात और छात्रा न माने....दौड़ गई अपने घर...पास ही तो था।

यही बरसात...भादों का महीना....बारि‍श जोर से आने के आसार हो तो लो.....समय से घंटों पहले बज गई घंटी..टन..न..न...हो गई छुट़टी। अरे...बरसात होने वाली है..दीदीमनी लोगों को घर जाने में देर हो जाएगी न...इसलि‍ए छुट़टी..।

आज शनि‍वार है....बंद करो पढ़ाई-लि‍खाई। स्‍कूल कौन साफ करेगा ? लि‍पाई-पुताई..झाडू़..उत्‍साह से सब काम में जुट गई छात्राएं... हां, कुछ छात्र भी...मौजा ही मौजा...काम करो...खेलो और घर जाओ.......।

ठंड का दि‍न...और मजे..धूप में खेलो कबड़डी...दीदीमनी सारी...वो तो गप्‍पें मारते हुए बि‍नाई में व्‍यस्‍त हैं। सबके हाथ में सलाइयां....घरवालों के गर्म स्‍वेटर जो बन रहे हैं। बच्‍चों का क्‍या है...अभी नहीं खेलेंगे तो क्‍लास में बैठकर अपनी कुल्‍फी जमाएंगे। बच्‍चों की मस्‍ती...सारा दि‍न खेल-खेल और खेल....

बस....ऐसी ही बहुत सी यादें होंगी गांवों में सरकारी स्‍कूल में पढ़ने वाले सभी बच्‍चों के पास।बैठने के लि‍ए अपना बोरा और साथ में बस्‍ता लि‍या...पहुंच गए स्‍कूल।
अब तो स्‍थि‍ति में बहुत सुधार आया है। पहले की तरह मां-बाप स्‍कूल में दाखि‍ला कराकर नि‍श्‍चिंत नहीं हो जाते हैं। मगर ऐसे में भी कई शि‍क्षक हैं...जो प्रेरणास्रोत बने और उनके पढ़ाए बच्‍चों ने उम्‍मीदों के आसमान को छुआ.....

 तब शि‍क्षक बातों-बातों में मुहावरे का प्रयोग करते थे। मुझे अब तक याद है.....पाठ याद नहीं होने पर करमचंद सर छड़ी से मारते...रोओ तो कहते- 'गुरू जी मारे धम-धम..विद्या आए छम-छम'। एक और पसंदीदा मुहावरा था उनका...'कानी गाय के अलगे बथान'। नहीं भूलता कोई बचपन की याद और गांव  के माहौल में की गई पढ़ाई।

जिंदगी की पाठशाला में स्‍कूल के बाद  भी कई लोग ऐसे रहे जि‍न्‍होंने हमें बनाया....जीना सि‍खाया....
आज के दि‍न मेरे श्रद्धेय...मेरे सभी गुरूजन...आप जहां भी हों....मेरा शत-शत नमन...।

तस्‍वीर--साभार गूगल 

6 comments:

वसुन्धरा पाण्डेय said...

गुरू जी मारे धम-धम..विद्या आए छम-छम' वाह..कितना सुन्दर....
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाये...!!

अनुपमा पाठक said...

मुहावरे मीठे से...!

Shalini kaushik said...

शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाये...!!

अरुन अनन्त said...

नमस्कार आपकी यह रचना आज शुक्रवार (06-09-2013) को निर्झर टाइम्स पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

अज़ीज़ जौनपुरी said...

बहुत सुन्दर , अरे वाह भूगोल का नाम लेकर आप ने अच्छा किया अरे भाई मैं भी भूगोल का ही शिक्षक हँू अच्छा लगा

Onkar said...

मीठी-सी रचना