Thursday, September 26, 2013

प्रति‍छाया



यकीनन तुम
मेरी ही प्रति‍छाया हो संवेदनाओं से भरे समर्पण की पराकाष्‍ठा तक कि‍सी के लि‍ए कि‍सी के साथ होना
हर छोटी-बड़ी बात को परे झटककर हाथ थाम कर चलना जैसे कि अंति‍म सांस तक कुछ न बदलेगा कभी मगर हर वो बात जो चुभती है दि‍ल को जमा होती जाती है अंतस में
और जब दि‍ल पर भारी पड़ता है ये मस्‍ति‍ष्‍क रि‍साईकि‍लबीन से सारे कचरे बीन लाता है
और उनको हर्फ-दर-हर्फ पढ़कर...गुनकर अवि‍श्‍वास के तलवार की धार पैनी कर होती है उसी के सर कल़म की तैयारी जि‍सके कद़मो तले ख़ुद को बि‍छाया था कभी....

8 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना की
यकीनन तुम
मेरी ही प्रति‍छाया हो
संवेदनाओं से भरे
समर्पण की पराकाष्‍ठा तक
ये पंक्तियाँ लिंक सहित
शनिवार 28/09/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!

Unknown said...

vry nice nd
innovative thoughts rashmi ji !!!

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर अनुभूति की अभिव्यक्ति.यह क्रमागत कटु अनुभव की वृद्धि का परिणाम है l
नई पोस्ट साधू या शैतान
latest post कानून और दंड

Dr ajay yadav said...

बड़ी दर्शन भरी रचना हैं ,वैसे कई बार और पढ़कर तह में जाने की कोशिश करूँगा |
“अजेय-असीम{Unlimited Potential}”

Aparna Bose said...

हर छोटी-बड़ी बात को
परे झटककर
हाथ थाम कर चलना
जैसे कि अंति‍म सांस तक
कुछ न बदलेगा कभी
मगर हर वो बात
जो चुभती है दि‍ल को
जमा होती जाती है
अंतस में.……………ये पंक्तियाँ दिल को छू गयीं रश्मि जी। बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

दिगम्बर नासवा said...

इसी को तो जीवन कहते हैं ...

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

मन को छू जाने वाली रचना .कोमल .सुन्दर सृजन

भ्रमर ५