Friday, September 20, 2013

कास के फूल और शरद का आगमन


कल नि‍कल गई थी शहर से दूर.....अचानक नजर पड़ गई कास के सफेद फूलों पर। झट से याद आ गई स्‍कूल पाठ़यक्रम  में पढ़ी तुलसीदास रचि‍त शरद लालि‍त्‍य का वर्णन.....


 ‘वर्षा विगत शरद रितु आई, देखहूं लक्ष्मण परम सुहाई,

  फूले कास सकल मही छाई, जनु बरसा कृत प्रकट बुढा़ई'


पुराने को तज के नए की ओर देखने का वक्‍त है शरद ऋतु.....जब बारि‍श  समाप्‍ति की ओर होती है तो हमें सबसे पहले मैदानी इलाकों में कास के सफेद  फूल लहलहाते दिखाई पड़ते हैं। लगता है धरा ने सफेद चादर ओढ ली है।
बहुत 
ही मनोरम होता है यह दृश्‍य....कास के फूल जब तेज हवाओं से झूमते हैं तो
मन आनंदि‍त हो जाता है, जैसा कि कल मेरा हो गया था। उस पर से लगातार बारि‍श....सफेद आसमान में आच्‍छादि‍त बादल मन को धवल मुग्‍धता से बांध रहे थे। जैसे पूरी धरा स्नान कर तरोताज़ा हो गई हो. सब कुछ नया सुंदर मनमोहक.....

तो सामने खड़ी थी शरद ऋतु.....शरद ऋतु यानी त्‍योहारों का मौसम...फूलों का मौसम...सबसे खूबसूरत होता है नाजुक हरसिंगार का खि‍लना और धरती पर बिछ जाना.... मैं ढूंढती हूं रातों में खि‍ले हरसिंगार ...उसके नारंगी डंठल
को देख हर्षित होती हूं...और एकदम सुबह  समेट लाती हूं हथेलि‍यों में.... नाजुक अहसास के साथ शहर के कुछ कि‍लोमीटर दूर नि‍कल जाइए तो तालाब - पोखरों में लाल-सफ़ेद कमल और कुमुदनी लदे दि‍खते हैं, यहां तक कि गडढ़ों में भी कुमुदनी सुशोभि‍त होती है। जी ललक उठता है ..कि उतर जाएं पोखरों में और तोड़ लाए कुछ कमल...

यह मौसम होता है साफ नीला आसमान और ठंड के आगमन से पहले खूबसूरत मौसम का
सन्‍धि‍  काल। न गरमी न ठंड....मन खि‍ला-खि‍ला सा लगता है...खि‍ले फूल ...खुले आसमान की तरह...
मधुमालती की लताएं भरने लगती हैं इसी वक्‍त....शाम को मालती के फूलों की हल्‍की-हल्‍की मादक खुश्‍बू मन मोहती है और चांद अपने पूरे सौंदर्य के साथ होता है....शरद पूर्णिमा का चांद....सोलह कलाओं से परि‍पूर्ण..शरद में ही कृष्‍ण ने गोपि‍यों संग रासलीला रचाई थी.....

शायद इसलि‍ए हमारे कवि‍गण इस ऋतु के प्रशंसक हैं। नि‍राला लि‍खते  हैं...'झरते हैं चुंबन गगन के'  तो उधर वैदि‍क वांग्‍मय सौ शरद की बात करता है- 'जीवेत शरद: शतम्'..अर्थात कर्म करते हुए सौ शरद जीवि‍त रहें। 



यह ऐसा मौसम है जब न हमें ताप का अहसास होता है न ही ठंड का। फसलें भी लहलहाती हैं इसलि‍ए सबके मन में खुशी होती है। उपर से सबसे ज्‍यादा त्‍योहार शरद ऋतु में ही मनाया जाता है। अब पितृपक्ष शुरू हो गया। पंद्रह दि‍नों के बाद दशहरा। दशहरा में चार दि‍नों तक इतनी गहमागहमी होती है...लोग पूजोत्‍सव में इस कदर रमे होते हैं कि लगता नहीं पूरे झारखंड में कोर्इ समस्‍या या गरीबी है। 

वैसे भी झारखंड का राजनीति‍क मौसम जैसा भी रहे, यहां का प्राकृति‍क सौंदर्य इतना अभि‍भूत करने वाला है कि बाहर के राज्‍यों से आए लोगों की बातें छोड़ दीजि‍ए......हमें खुद अहसास होता है कि हम एक ऐसी जगह नि‍वास करते हैं जहां पर प्रकृति ने कूट कूट कर सौंदर्य भरा है। और यह  नैसर्गिक है, 
अब तक सरकारी उपेक्षा का शि‍कार है....शायद इसलि‍ए अछूता सौंदर्य आंखों में भर आता है।

तुलसीदास लिखते हैं- शरद के सुहावने मौसम में राजा, तपस्वी, व्यापारी, भिखारी सब हर्षित होकर नगर में विचरते हैं। और हम जैसे कुछ प्रकृति‍ प्रेमी शरद ऋतु का वर्ष भर इंतजार करते हैं और शहर के कोलाहल से दूर गांवों की ओर जा नि‍कलते हैं। 


23 सितंबर को जनसत्‍ता के संपादकीय पेज के 'समानांतर' कॉलम में प्रकाशि‍त आलेख
दैनिक लोकदशा के संपादकीय पेज पर डेली डायरी में प्रकाशि‍त
27/ 9/ 13 को लाइव हिंदुस्‍तान डाट काम के गेस्‍ट कॉलम में प्रकाशि‍त 

16 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..आप को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल परिवार की ओर से सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप को चर्चाकार के रूप में शामिल किया जाता है। आप techeduhub@gmail.com पर अपनी Email ID भेजकर इसके सदस्य बन सकते हैं। सादर...ललित चाहार

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  2. बहुत प्यारा लेख लिखा आपने मुझे अंदर तक सुहाना एहसास भर आया.याद आ गयी पोखरों में खिली कुमुदनी, कोहड़े के फूलों से लदी बेल जिन्हें देख कर अनायास ही अधर मुस्कुरा उठते हैं ,दूर तक दौड़ते चले जाने का मन करता है और पता नहीं क्या क्या उमंगें उठती हैं.

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति रश्मि जी | सचमुच नयापन एक अलग ही सुखमय एहसास दिलाता है |

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  4. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार - 22/09/2013 को
    क्यों कुर्बान होती है नारी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः21 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra





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  6. आज की विशेष बुलेटिन विश्व शांति दिवस .... ब्लॉग बुलेटिन में आपकी इस पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर .... आभार।।

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  7. आज की विशेष बुलेटिन विश्व शांति दिवस .... ब्लॉग बुलेटिन में आपकी इस पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर .... आभार।।

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  8. सुंदर। इधर मैने भी कास के फूलों की बहुत सी तस्वीरें खींची।

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  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति रश्मि जी.बिहार और झारखण्ड के अंचलों में कास के पौधे बहुतायत में पाये जाते हैं.
    नई पोस्ट : अद्भुत कला है : बातिक

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  10. बहुत प्यारा लिखा है रश्मि...मानों कलम नहीं कूची से कोई सुन्दर चित्रकारी की हो....

    अनु

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  11. मैं भी रांची झारखण्ड से हूँ। आपने इतनी खूबसूरती से कास फूल वर्णन किया है कि मेरी धरती के रंग मेरी आँखों के सामने सजीव हो गए .

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  12. एक पठनीय ललित लेख -आनंद आया आभार!

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  13. झाड़खंड में हर ओर प्रकृति की यह छटा पूरे निखार पर है।

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  14. शरद ऋतु के आगमन का सुंदर और सजीव वर्णन...,

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