बूंदों को तुम सहेजो
मिलो नदी में...
बन जाओ समुद़ की उ़दात लहरें
मैं दे दूंगी तुमको
संचित एक बूंद जीवन की
और बन जाउंगी
सूखा रेगिस्तान
कि( जब
हममें कोई मेल नहीं
क्यों पकड़ें एक बूंद का दामन.......
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किस बात पे हैरां हो तुम
किस बात पे है ये खामोशी
मतलब पड़ने पर ही दुनियां
किया करती है कदमब़ोसी
बहुत सुन्दर भाव......
ReplyDeleteअनु
सुन्दर भाव......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉगर्स चौपाल आज की चर्चा : दिशाओं की खिड़की खुली -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : चर्चा अंक :006
ललित वाणी पर : जिंदगी की नई शुरूवात
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण...
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन
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