Monday, September 16, 2013

उम्मीदों की उमर.....


हर दर्द की मुकर्रर एक हद होती है
हर रात की एक सहर होती है
अब ढक दि‍ए हमने अपने जख्‍म सारे
बाँझ उम्मीदों की भी एक उमर होती है

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एक फ़रेब पर टि‍की थी जिंदगी, उसे भी तोड़ दि‍या 
सि‍तम ये है कि आहों पर भी है अब बंदि‍शे तमाम

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शब्‍द अर्थहीन होते हैं जब बोलती हैं नि‍गाहें 

लोग हैं कि कहते हैं, आप कुछ कहते ही नहीं


तस्‍वीर...शहर से 30 मि‍लोमीटर दूर..रूक्‍का डैम की

7 comments:

  1. हर दर्द की मुकर्रर एक हद होती है
    हर रात की एक सहर होती है
    अब ढक दि‍ए हमने अपने जख्‍म सारे
    बाँझ उम्मीदों की भी एक उमर होती है
    वाह सुन्दर रश्मिजी ,
    गुस्ताखी के साथ कहना चाहूँगा ,हर सहर एक सूरज ले कर आती है नयी उम्मीदों का सूरज,
    क्षितिज पर जाने से पहले हर शाम कह जाती है, यह पैगाम देकर,,
    निराश न हो मैं कल फिर आऊंगा तेरी आशाओं का भरा टोकरा लेकर,
    जीवन तो वह है जो चलता है सुबह शाम किसी उम्मीद को लेकर.

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