बहुत उदास थी सुबह
सहमी हवाओं ने
नहीं चूमा आज अलकों को
ताल के पानी पर
हरी काई की
बिछी परत ने जैसे
ढक लिया था खुशियों को
तुम्हें खोने के गम तले
खुली हथेलिओं के साए में
एक ऐसी रात गुजरी
कि अनिश्चित था सब
सुबह भरा रहेगा दामन
या रीत जाएगा
दिल कह रहा है
आओ न
बस एक बार आवाज दो
मैं मुड़ के देखूं
और कभी जा न पाउं दूर तुमसे
जानती हूं
आंचल में पानी नहीं ठहरता कभी
इसलिए
तुम फूल कर आ जाओ
मेरे दामन में समा जाओ
कहती हूं.....सुन लो तुम
मेरे सर्वस्व बन जाओ......
तस्वीर...मेरे कैमरे की आंखों में कैद...दो फूल
बहुत सुन्दर भाव ...दिल की पुकार !latest post गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)
ReplyDeleteLATEST POSTअनुभूति : Teachers' Honour Award
शब्द नहीं मिल रहे हैं
ReplyDeleteआपकी प्रशंसा के लिए....
बहुत शानदार
जानती हूं
ReplyDeleteआंचल में पानी नहीं ठहरता कभी
इसलिए
तुम फूल कर आ जाओ
मेरे दामन में समा जाओ.... वाह .. अति सुन्दर भाव !
आपकी इस उत्कृष्ट रचना की प्रविष्टि कल रविवार, 15 सितम्बर 2013 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in पर भी... कृपया पधारें ... औरों को भी पढ़ें |
सुंदर भावपूर्ण सृजन ! बेहतरीन रचना !
ReplyDeleteRECENT POST : बिखरे स्वर.
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-09-2013) के चर्चामंच - 1369 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteशब्द नहीं मिल रहे हैं
ReplyDeleteआपकी प्रशंसा के लिए....
बहुत शानदार
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteदिल कह रहा है
ReplyDeleteआओ न
बस एक बार आवाज दो
मैं मुड़ के देखूं
और कभी जा न पाउं दूर तुमसे-----
प्रेम के अहसास को बहुत खूब लिखतीं हैं
बहुत सुंदर
सादर
ज्योति
बहुत सुन्दर भाव
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteब्लॉग प्रसारण लिंक 6 - कहती हूँ .. सुन लो तुम [रश्मि शर्मा ]
ReplyDeleteअथाह प्रेम की विरह की तड़प का सुन्दर वर्णन बेहतरीन पंक्तियाँ शानदार अभिव्यक्ति हार्दिक बधाई आपको
सुन लो तुम, इतनी गहराई से आवाज़ देंगी तो सुनी ही जायेगी। बहुत भावभीनी विरह व्यथा।
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