Saturday, September 14, 2013

कहती हूं.....सुन लो तुम


बहुत उदास थी सुबह
सहमी हवाओं ने 
नहीं चूमा आज अलकों को
ताल के पानी पर
हरी काई की 
बि‍छी परत ने जैसे 
ढक लि‍या था खुशि‍यों को

तुम्‍हें खोने के गम तले
खुली हथेलि‍ओं के साए में
एक ऐसी रात गुजरी
कि अनि‍श्‍चि‍त था सब
सुबह भरा रहेगा दामन
या रीत जाएगा

दि‍ल कह रहा है
आओ न
बस एक बार आवाज दो
मैं मुड़ के देखूं
और कभी जा न पाउं दूर तुमसे

जानती हूं
आंचल में पानी नहीं ठहरता कभी
इसलि‍ए
तुम फूल कर आ जाओ
मेरे दामन में समा जाओ
कहती हूं.....सुन लो तुम
मेरे सर्वस्‍व बन जाओ......


तस्‍वीर...मेरे कैमरे की आंखों में कैद...दो फूल

12 comments:

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर भाव ...दिल की पुकार !latest post गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)
LATEST POSTअनुभूति : Teachers' Honour Award

Sarik Khan Filmcritic said...

शब्द नहीं मिल रहे हैं
आपकी प्रशंसा के लिए....
बहुत शानदार

shalini rastogi said...

जानती हूं
आंचल में पानी नहीं ठहरता कभी
इसलि‍ए
तुम फूल कर आ जाओ
मेरे दामन में समा जाओ.... वाह .. अति सुन्दर भाव !
आपकी इस उत्कृष्ट रचना की प्रविष्टि कल रविवार, 15 सितम्बर 2013 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in पर भी... कृपया पधारें ... औरों को भी पढ़ें |

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सुंदर भावपूर्ण सृजन ! बेहतरीन रचना !

RECENT POST : बिखरे स्वर.

अरुन अनन्त said...

नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-09-2013) के चर्चामंच - 1369 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

Sarik Khan Filmcritic said...

शब्द नहीं मिल रहे हैं
आपकी प्रशंसा के लिए....
बहुत शानदार

Dr. Shorya said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

Jyoti khare said...

दि‍ल कह रहा है
आओ न
बस एक बार आवाज दो
मैं मुड़ के देखूं
और कभी जा न पाउं दूर तुमसे-----

प्रेम के अहसास को बहुत खूब लिखतीं हैं
बहुत सुंदर

सादर
ज्योति

Vandana Ramasingh said...

बहुत सुन्दर भाव

Arun sathi said...

sundar

अरुन अनन्त said...

ब्लॉग प्रसारण लिंक 6 - कहती हूँ .. सुन लो तुम [रश्मि शर्मा ]
अथाह प्रेम की विरह की तड़प का सुन्दर वर्णन बेहतरीन पंक्तियाँ शानदार अभिव्यक्ति हार्दिक बधाई आपको

Asha Joglekar said...

सुन लो तुम, इतनी गहराई से आवाज़ देंगी तो सुनी ही जायेगी। बहुत भावभीनी विरह व्यथा।