Monday, September 2, 2013

सुबह के दो रंग.....

मैं अकेला सही.....क़ायनात खिल उठी एक मेरी मौज़ूदगी से.......



खि‍ली-खि‍ली थी 
सुबह
मगर अब 
मुरझा गई
ऐसी 
क्‍या बात हुई
मायूसी सब तरफ
छा गई
जाने कहां गया
वो खुश्‍बू का झोंका
कोई खबर नहीं
ऐसा लग रहा
मेरी जिंदगी
से हर रंग
ये सुबह
चुरा ले गई......

2 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

जाने कहां गया
वो खुश्‍बू का झोंका
कोई खबर नहीं
ऐसा लग रहा
मेरी जिंदगी
से हर रंग
ये सुबह
चुरा ले गई......

बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,

RECENT POST : फूल बिछा न सको

रश्मि प्रभा... said...

किसी एक रंग की मौजूदगी मौसम की तस्वीर बदल देती है