Monday, August 26, 2013

मन मोम है और आँखें झील...


मन मोम है
और आँखें झील
एक बूंद ठहर गई है
पलकों पर आकर

आओ...छू लो,

सहला दो
आहत मन को
प्रेम स्पर्श से

करो फिर से सरगोशी
मेरे कानों में
और गिर जाने दो
पलकों से आँसू

बह जाने दो सारा "अहम"
कस लो गुंजलक में
कि इनके बाहर
मेरी कोई दुनिया नहीं



तस्‍वीर--हमारे तालाब में तैरते बत्‍तख...

साप्‍ताहिक 'तीसरी जंग' में प्रकाशि‍त कवि‍ता

5 comments:

रश्मि प्रभा... said...

सबकुछ ठहर जाने दो …।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

और गिर जाने दो पलकों से आँसू,,,

सुंदर अभिव्यक्ति ,,,

RECENT POST : पाँच( दोहे )

Anonymous said...

मैं हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} दैनिक बना रहा हू। मैं चाहाता हू आप चर्चाकार के रूप शामिल हो। सादर...ललित चाहार

अरुन अनन्त said...

आपकी यह रचना कल मंगलवार (27-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।