मन मोम है
और आँखें झील
एक बूंद ठहर गई है
पलकों पर आकर
आओ...छू लो,
सहला दो
आहत मन को
प्रेम स्पर्श से
करो फिर से सरगोशी
मेरे कानों में
और गिर जाने दो
पलकों से आँसू
बह जाने दो सारा "अहम"
कस लो गुंजलक में
कि इनके बाहर
मेरी कोई दुनिया नहीं
तस्वीर--हमारे तालाब में तैरते बत्तख...
साप्ताहिक 'तीसरी जंग' में प्रकाशित कविता
5 comments:
सबकुछ ठहर जाने दो …।
और गिर जाने दो पलकों से आँसू,,,
सुंदर अभिव्यक्ति ,,,
RECENT POST : पाँच( दोहे )
मैं हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} दैनिक बना रहा हू। मैं चाहाता हू आप चर्चाकार के रूप शामिल हो। सादर...ललित चाहार
आपकी यह रचना कल मंगलवार (27-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
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