रात की झील पर
तैरती उदास किश्ती
हर सुबह
आ लगती है किनारे
मगर न जाने क्यों
ये जिया बहुत
होता है उदास .....
ऐ मेरे मौला
कहां ले जाउं
अब अपने
इश्क के सफ़ीने को
तेरी ही उठाई
आंधियां हैं
है तेरे दिए पतवार....
कहती हूं तुझसे अब
सुन ले हाल
जिंदगी की झील पर
उग आए हैं कमल बेशुमार
उठा एक भंवर
मुझको तो डूबा दे
या मेरे मौला
अब पार तू लगा दे......
तस्वीर--साभार गूगल
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [12.08.2013]
ReplyDeleteचर्चामंच 1335 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
या मौला, पतवार भी, तुफान भी बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत खूब सुंदर प्रस्तुति ,,,
ReplyDeleteRECENT POST : जिन्दगी.
बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteरामराम.
उसका दिया है सब कुछ तो पार भी वो लगायेगा ... बस तैरना यूं ही समय के साथ
ReplyDeleteumda rachna badhayi :)
ReplyDeleteमौला की नाव है...उसी की पतवार और भंवर...तो वो ही पार भी लगाएगा...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...
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