न वक्त रूका
न जिंदगी थमी
न धीमी पड़ी चांद-सूरज की रफ़तार
न हवाओं ने रूख मोड़ा उधर से
जहां पर हम खड़े थे, सहमे से
मगर तुमने---- फकत तुमने
क्यों छोड़ दिया मेरा साथ
अपने होने का यकीन दिला सके
जो तुम्हें पसंद आ सकेक्या ऐसी
एक भी नहीं थी मुझमें बात....?
तस्वीर--फूल जो मुझे हमेशा अच्छे लगते हैं...बेशक मेरे कैमरे को भी
12 comments:
जो तुम्हें पसंद आ सकेक्या ऐसी
एक भी नहीं थी मुझमें बात....?
बढ़िया है आदरेया-
कुछ सिखाती समझाती कविता...... बहुत सुंदर भाव
बेहतरीन अभिव्यक्ति.
रामराम.
बहुत उम्दा,सुंदर अभिव्यक्ति,,,,
RECENT POST : अभी भी आशा है,
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18/07/2013 के चर्चा मंच पर है
कृपया पधारें
धन्यवाद
बहुत सुंदर , मंगलकामनाये
आपकी यह पोस्ट आज के (१७ जुलाई, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - आफिसर निर्मलजीत सिंह शेखो को श्रद्धांजलि पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
बहुत सुंदर
क्या करें ये तो दिल की बात है...
सुंदर भाव...
एक नजर इधर भी...
यही तोसंसार है...
सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
बहुत बहुत सुंदर
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