Saturday, July 6, 2013

जन्‍मों के बि‍छड़े साथी.....


हां...
सदि‍यां गुजर गईं
तुम्‍हें तलाशते
पहचानते
कि तुम वही हो
जि‍सके साथ जुड़ा है
जन्‍मों का बंधन...
मगर 
आज तुम मि‍ले हो
ऐसे वक्‍त...
इस जगह, जहां
जड़े इतनी गहरी हैं
कि चाहूं तो भी
मि‍ट़टी हट नहीं सकती
नया पौधा पनप नहीं सकता
फि‍र क्‍या करूं
सदि‍यों के रि‍श्‍ते का
जन्‍मों के बंधन का....
हां, तुम वही हो
मगर पक्‍की मि‍ट़टी तले
बरसों से खड़े
पेड़ जड़ से नहीं उखड़ा करते
जन्‍मों के बि‍छड़े साथी
हर जन्‍म में नहीं मि‍ला करते.....


तस्‍वीर--साभार गूगल

11 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,अभार।

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  2. बहुत ही गहन रचना.

    रामराम.

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  3. बहुत सुन्दर भावमयी रचना...

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  4. पेड़ जड़ से नहीं उखड़ा करते
    जन्‍मों के बि‍छड़े साथी
    हर जन्‍म में नहीं मि‍ला करते..

    वाह , बहुत सुंदर , बिलकुल सही, आभार


    यहाँ भी पधारे ,
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_5.html

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (07-07-2013) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/“ मँहगाई की बीन पे , नाच रहे हैं साँप” (चर्चा मंच-अंकः1299) <a href=" पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. मैं भी कितना भुलक्कड़ हो गया हूँ। नहीं जानता, काम का बोझ है या उम्र का दबाव!
    --
    पूर्व के कमेंट में सुधार!
    आपकी इस पोस्ट का लिंक आज रविवार (7-7-2013) को चर्चा मंच पर है।
    सूचनार्थ...!
    --

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  7. जन्मों के साथी हर जन्म में मिला नहीं करते !
    बहुत खूब !

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  8. सुन्दर रचना

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  9. यूं तो एक उम्र भी भरपूर जी लें तो हमेशा की जरूरत नहीं होती ...
    लाजवाब ख्याल है ...

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