Thursday, July 4, 2013

कब्रगाह फूलों की......



गि‍र गई कल
हाथों से छि‍टक कर
जमीन पर
एक पुरानी डायरी
उसमें से झांकने लगा
सूखा-सहेजा
एक गुलाब
का फूल

मुझसे कह रहा हो
जैसे
बेजान पन्‍नों में
सि‍मटकर
रह लि‍या बहुत दि‍न
अब दम घुटता है
कर दो मुक्‍त मुझे
कि जीना चाहता हूं

पंखुडि‍या भले ही
सूख गई हों
पर मुझमें है अब भी
वही कोमल संवेदनाएं
चाहता हूं
फि‍र उन्‍हीं हाथों का स्‍पर्श
जि‍सने
कि‍सी की याद बना
मुझे कैद कि‍या है

छूकर उसे
बता सकूं कि
खुश्‍बू हो या यादें
बंदि‍शें नहीं मानती कभी
मत बनाओ कि‍ताबों को
कब्रगाह फूलों की
कि‍ यादें ताजा हो सकती हैं
करना चाहो तो
बगि‍या में खि‍ले
गुलाब से भी

तस्‍वीर--साभार गूगल

11 comments:

  1. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति , बहुत शुभकामनाये , गुलाब का हाल ए दिल बयां कर दिया


    यहाँ भी पधारे

    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/01/yaadain-yad-aati-h.html

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  2. बढ़िया -
    शुभकामनायें-

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  3. पंखुडि‍या भले ही
    सूख गई हों
    पर मुझमें है अब भी
    वही कोमल संवेदनाएं
    चाहता हूं
    फि‍र उन्‍हीं हाथों का स्‍पर्श
    जि‍सने
    कि‍सी की याद बना
    मुझे कैद कि‍या है

    बहुत ही खूबसूरत.

    रामराम.

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  4. waah....bahut khoobsurat hraday sparshi rachna.

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  5. खुश्‍बू हो या यादें
    बंदि‍शें नहीं मानती कभी
    मत बनाओ कि‍ताबों को
    कब्रगाह फूलों की
    कि‍ यादें ताजा हो सकती हैं
    करना चाहो तो
    बगि‍या में खि‍ले
    गुलाब से भी
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  6. वाह...
    बहुत खूबसूरत....

    अनु

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  7. बेहद खुबसूरत हृदयस्पर्शी रचना..
    लाजवाब...
    :-)

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  8. बहुत खुश्बूदार खूबसूरत रचना .....

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