कितनी है
आकाश की उँचाई
और धरती की गहराई
ये हम कल्पना कर सकते हैं
मगर
नापना चाहकर भी
नाप नहीं सकते
फिर
मेरे अंतस में छुपे भावों की
तुम्हारे प्रति
छलकते प्यार को
और जुड़े रहने की चाह को
क्यों नापना चाहते हो
बार-बार
है कोई नापना जो तुम्हारे पास
तो दे दो मुझे
मैं बता दूं नापकर
कि कितना प्यार है तुमसे.........
तस्वीर--साभार गूगल
14 comments:
बहुत सुंदर, सही कहा, ऐसी कोई तोल नही है, जो हमारे जज्बातों को नाप सके,
आपने लिखा....हमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 13/07/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
ati sunder
क्यों नापना चाहते हो
बार-बार
है कोई नापना जो तुम्हारे पास
तो दे दो मुझे
मैं बता दूं नापकर
कि कितना प्यार है तुमसे.........
बहुत ही सुंदर और भावप्रवण रचना.
रामराम.
अतिसुन्दर
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(13-7-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!
क्यों नापना चाहते हो
बार-बार
है कोई नापना जो तुम्हारे पास
तो दे दो मुझे
मैं बता दूं नापकर
कि कितना प्यार है तुमसे....
सुन्दर प्यार का भी भला कोई नाप होता है?
क्यों नापना चाहते हो
बार-बार
है कोई नापना जो तुम्हारे पास
तो दे दो मुझे
मैं बता दूं नापकर
कि कितना प्यार है तुमसे....
सुन्दर प्यार का भी भला कोई नाप होता है?
क्यों नापना चाहते हो
बार-बार
है कोई नापना जो तुम्हारे पास
तो दे दो मुझे
मैं बता दूं नापकर
कि कितना प्यार है तुमसे....
बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन ,
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- उत्तर कहाँ दे पाएगा बेचारा !
सब कुछ कह गयी ये पंक्तिया....... बहुत ही खूबसूरती स वयक्त किया है मन के भावो को....
सुंदर भाव...
यही तोसंसार है...
प्यार का कोई नाप नहीं , सुन्दर अभिव्यक्ति!
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बहुत बहुत सुंदर
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