Friday, July 12, 2013

रोज़ एक सदा आती है मुझे.....


गुज़रे खुश लम्‍हों की याद दि‍ला जाती है मुझे !
एक आवाज है जो हर रात जगा जाती है मुझे !!

धुंधलाए शाम में एक परिंदा उड़ गया था एक दि‍न !
शाख की कोटरों से हर रोज़ एक सदा आती है मुझे !!

रि‍हा करूं इसलि‍ए नहीं कैद कि‍या था उनको आंखों में !
बदलता वक़्त देख बेबसी मेरी रोज रूलाती है मुझे !!

अब तो तेरा नाम भी दीवारों से मिट गया है 'रश्‍मि' !
क्यूं हर ईंट उसका नाम अब भी नाम सुनाती है मुझे !!


तस्‍वीर--साभार गूगल 

12 comments:

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत उम्दा ग़ज़ल !
latest post केदारनाथ में प्रलय (२)

Amrita Tanmay said...

क्या खूब..

ताऊ रामपुरिया said...

सभी शेर बहुत सुंदर, शानदार गजल.

रामराम.

Onkar said...

सुन्दर शेर

Aditi Poonam said...

बहुत खूब ,ग़ज़ल बहुत खूब कही आपने....
साभार....

poonam said...

ufff .... dil ko chuti rachna

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत ही सुन्दर गजल...
:-)

अरुन अनन्त said...

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14 -07-2013) के चर्चा मंच -1306 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

Ankur Jain said...

रि‍हा करूं इसलि‍ए नहीं कैद कि‍या था उनको आंखों में !
बदलता वक़्त देख बेबसी मेरी रोज रूलाती है मुझे !!

सुंदर पंक्तियाँ...

Rajesh Kumari said...

धुंधलाए शाम में एक परिंदा उड़ गया था एक दि‍न !
शाख की कोटरों से हर रोज़ एक सदा आती है मुझे !!
बहुत शानदार अशआर लगा ये ,बहुत बहुत बधाई रश्मि जी

सुनीता अग्रवाल "नेह" said...

वाह्ह उम्दा अभिव्यक्ति .. बधायी

Anonymous said...

बहुत सुंदर