अक्स तेरा ही झलकता है....
मेरे
मन के आंगन में
लगे
तुलसी के बिरवे को
प्रेम-जल से
सींचती रही हूं बरसों
संचित कर सीने में
रखा है उस एक छुअन को
जो मेरे माथे पर
सिंदुरी होंठों से
रख दिया था तुमने
मेरे प्राण, मेरे श्रृंगार
आईने में
जब भी रूप मेरा
दमकता है
आंखों के काजल से ले
हाथों की मेंहदी तक
अक्स तेरा ही
झलकता है.....
तस्वीर--साभार गूगल
जो दिल में है ,वही चेहरे पर झलकता है !
ReplyDeleteखूब भालो :)
सुंदर रचना
ReplyDeletehttp://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_29.html
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeletelatest post हमारे नेताजी
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु