घायल बतख के
सफेद टूटे पंखो से
भर जाएगा
आसमान
उड़ने लगेंगी अरमानों की
रंगीन कतरनें
कहा था न मैंने
मुझे यूं ही जीने दो
भरा-भरा सा रहने दो
जब आएंगी आंधियां
कुछ न बचेगा
न नदी न थार
न झरने का कोई अस्तित्व
मुझे विलुप्त करने की चाह
में कहीं
खुद ही न लुप्त हो जाओ
एक प्यास बुझाने को
दूजी प्यास को न जगाओ
सच है
जाने वाले को पीछे से
आवाज नहीं दिया करते
वो सांझ
जो दिलों को टुकड़ों में बांट दे
उसे याद नहीं किया करते........
मेरे कैमरे में कैद आस्मां....
वो सांझ
ReplyDeleteजो दिलों को टुकड़ों में बांट दे
उसे याद नहीं किया करते........
सुन्दर
कैमरे में कैद आसमां भी ...
साभार !
बढिया
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
यहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_29.html
आपकी रचना कल बुधवार [31-07-2013] को
ReplyDeleteब्लॉग प्रसारण पर
हमने जाना
आप भी जानें
सादर
सरिता भाटिया
जो दिलो को टुकडे में बाट दे उसे याद नहीं कियाकरते
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत .....
जो दिलो को टुकडे में बाट दे उसे याद नहीं कियाकरते
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत .....
बड़ी ही सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर, प्रभावशाली.
ReplyDeleteरामराम.
जब आएंगी आंधियां
ReplyDeleteकुछ न बचेगा
न नदी न थार
न झरने का कोई अस्तित्व
मुझे विलुप्त करने की चाह
में कहीं
खुद ही न लुप्त हो जाओ
एक प्यास बुझाने को
दूजी प्यास को न जगाओ
आपकी ये रचना प्रकृति का भी मानव को संदेश है । सुंदर प्रस्तुति ।
जाने वाले को पीछे से आवाज़ नहीं दिया करते -कविता में पिरोया यह वाक्य पूरी कविता को बाँध लेता है। इतनी अच्छी कविताएँ पढ़कर लगा कि अच्छा रचने वालों की कमी नहीं है। चित्रों का संयोजन मोहक है।रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
ReplyDeleterdkamboj@gmail.com