किसने कहा बादलों के पंखों पर
तैरने वाले फरिश्तों को
जल में खिली कुमिदिनी की महक
पसंद नहीं आती
और जलती धरती का सीना
तर करने वाली बूंदों को
मिट्टी की सौंधी सुगंध नहीं लुभाती
कभी होता है यूँ ...कि
वर्जनाओं के भारी परदे तले खुद को छुपाने वाले
सारी दीवारें गिरा देते हैं
मगर .....
उम्र भर ना लांघी हो जिसने अपनी दहलीज
वो लोग
अपने हिस्से का चांद पाने भी
कभी खुले आस्मां तले नहीं आते ....
तस्वीर...एक सुहानी शाम और नजर मेरे कैमरे की
7 comments:
उम्र भर ना लांघी हो जिसने अपनी दहलीज
वो लोग
अपने हिस्से का चांद पाने भी
कभी खुले आस्मां तले नहीं आते ....
सुंदर रचना,
बढिया, बहुत सुंदर
मुझे लगता है कि राजनीति से जुड़ी दो बातें आपको जाननी जरूरी है।
"आधा सच " ब्लाग पर BJP के लिए खतरा बन रहे आडवाणी !
http://aadhasachonline.blogspot.in/2013/07/bjp.html?showComment=1374596042756#c7527682429187200337
और हमारे दूसरे ब्लाग रोजनामचा पर बुरे फस गए बेचारे राहुल !
http://dailyreportsonline.blogspot.in/2013/07/blog-post.html
सुंदर रचना,
खुला आसमान जाना नहीं जिसने,अपने हिस्से का चाँद कहाँ समेट पाएगा !
सुन्दर प्रस्तुति -
आभार आपका -
होता है और अक्सर ऐसा होता है ... ये स्थिति मन की है और जब वो बागी हो जाए .. कुछ नहीं देखता ...
वर्जनाओं व संकोच की कसमसाहट के बीच फंसा इंसान अपनी स्वनिर्धारित सीमाओं से आगे नहीं बढ़ पता सुन्दर प्रस्तुति रश्मिजी.
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