जिन आंखों में थे
कई सपने
छलकता था प्यार
और जिनमें
गहरा गुलाबी हो चला था
अनुराग का रंग
अब वहां कैसे
उमड़ आया रेत का समंदर
क्यों आने दिया तुमने
हमारे दरमियां
ऐसे सूखे लम्हों को
जो हवा बनकर
उड़ा दे
बरसने वाले बादलों को
बदल दे
पावस को जेठ में
और पसर जाने दे
हमारे बीच
एक तवील सन्नटा
क्या
ज्ञात नहीं तुम्हें
नदी
जब सूखकर रेत में
बदल जाती है
तो बारिश के बूंदों से
नहीं भरता उसका दामन
नदी
तब हरियाती है
जब उसके सोतों से
रिसता है पानी.....
हां
ये सच है
कि हर नदी तलाशती है
एक समंदर
जहां विलीन करना होता है उसे
अपना अस्तित्व
तुम झील बनकर क्यों मिलते हो
किसी नदी से
बन जाओ न
विशाल हृदय लेकर
एक शांत, नीला समंदर.....
तस्वीर--पूरी में समुद्र का किनारा जिसे कैद किया मेरे कैमरे ने
13 comments:
अनुपम भाव संयोजन के साथ बहुत ही सुंदर भावभिव्यक्ति...
बहुत सुंदर भाव.
रामराम.
सूखे लम्हों के बादल प्रेम की नमी उड़ा ले जाते हैं ... सीली यादों की चाह में जन्मी रचना ...
हो अभाव जब भाव का, अन्तर बढ़ता जाय |
हृदयस्थल में मरुस्थल, अन्तर मन अकुलाय-
मजबूत शिल्प-कथ्य-
आभार-
आपकी इस शानदार प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार २३/७ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है सस्नेह ।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति हार्दिक बधाई
सुंदर भाव
बहुत ही सुंदर भावभिव्यक्ति.
बहुत ही सुंदर भावभिव्यक्ति.
सराहनीय!
बूँद-बूँद हो सागर जैसे
शब्द-शब्द में प्यार
इस मधुमय अभिव्यक्ति हेतु
कोटि कोटि आभार।।
कृप्या यहाँ http://www.rajeevranjangiri.blogspot.in/ भी पधारें ..धन्यवाद
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
बहुत कोमल भाव -उत्कृष्ट प्रस्तुति
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