Saturday, July 13, 2013

अनदेखी लि‍पि‍यां.....



कही तुमने मुझसे
बार-बार वो बातें
जि‍नका मेरे लि‍ए
न कोई अर्थ है
ना ही अस्‍ति‍त्‍व

जो मैं पढ़ना चाहूं
तुम्‍हारे आंखों की
अनदेखी लि‍पि‍यां
कहो कौन सी कूट का
इस्‍तेमाल करूं

मैं ढूंढती रहती हूं
कोई ऐसा स्रोत
ऐसी कि‍ताब
जो आंखों की भाषा को
शब्‍दों में बदलती हो

है ये ईसा पूर्व की या
सोलहवीं सदी
की सी बात
कि हमारे बीच से
शब्‍द अदृश्‍य ही रहे हैं

अब तुम पढ़ना
मेरा मौन, सहना
मेरी अनवरत प्रतीक्षा
और मैं कूट-लि‍पि‍क बन
पढूंगी, आंखों की अनदेखी लि‍पि‍यां


तस्‍वीर जो इन आंखों को भायी..

12 comments:

  1. अनदेखी लिपिया , बहुत सटीक चित्रण

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  2. विचारणीय भावों की अभिव्यक्ति आभार

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  3. जो मैं पढ़ना चाहूं
    तुम्‍हारे आंखों की
    अनदेखी लि‍पि‍यां
    कहो कौन सी कूट का
    इस्‍तेमाल करूं

    बहुत ही खूबसूरत रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. बहुत सुंदर रचना
    बहुत सुंदर

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  5. नए बिम्ब के साथ .. कौन सी कूट का इस्तेमाल करूं .. वाह ...

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  6. अब तुम पढ़ना
    मेरा मौन, सहना
    मेरी अनवरत प्रतीक्षा
    और मैं कूट-लि‍पि‍क बन
    पढूंगी, आंखों की अनदेखी लि‍पि‍यां
    इन सब के बाद बहुत कठिन होता है कूट लिपिक बन अनदेखी लिपियों को पढना.क्योंकि बे अर्थ,बेअस्तित्व की बातों का कोई अंत नहीं होता,और इन्हें करने वाले के कोई मगज नहीं होता.बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति इस हेतु बहुत बधाई.

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  7. वाकई अब अपनों के बीच शब्द गायब होते जा रहें हैं
    प्रेम की गहराई को शब्द देती सुंदर रचना

    बहुत खूब
    बधाई

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  8. अनदेखी लिपियाँ...

    पढ़ी ही जानी चाहिए!

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