गुज़रे खुश लम्हों की याद दिला जाती है मुझे !
एक आवाज है जो हर रात जगा जाती है मुझे !!
धुंधलाए शाम में एक परिंदा उड़ गया था एक दिन !
शाख की कोटरों से हर रोज़ एक सदा आती है मुझे !!
रिहा करूं इसलिए नहीं कैद किया था उनको आंखों में !
बदलता वक़्त देख बेबसी मेरी रोज रूलाती है मुझे !!
अब तो तेरा नाम भी दीवारों से मिट गया है 'रश्मि' !
क्यूं हर ईंट उसका नाम अब भी नाम सुनाती है मुझे !!
तस्वीर--साभार गूगल
बहुत उम्दा ग़ज़ल !
ReplyDeletelatest post केदारनाथ में प्रलय (२)
क्या खूब..
ReplyDeleteसभी शेर बहुत सुंदर, शानदार गजल.
ReplyDeleteरामराम.
सुन्दर शेर
ReplyDeleteबहुत खूब ,ग़ज़ल बहुत खूब कही आपने....
ReplyDeleteसाभार....
ufff .... dil ko chuti rachna
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गजल...
ReplyDelete:-)
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14 -07-2013) के चर्चा मंच -1306 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteरिहा करूं इसलिए नहीं कैद किया था उनको आंखों में !
ReplyDeleteबदलता वक़्त देख बेबसी मेरी रोज रूलाती है मुझे !!
सुंदर पंक्तियाँ...
धुंधलाए शाम में एक परिंदा उड़ गया था एक दिन !
ReplyDeleteशाख की कोटरों से हर रोज़ एक सदा आती है मुझे !!
बहुत शानदार अशआर लगा ये ,बहुत बहुत बधाई रश्मि जी
वाह्ह उम्दा अभिव्यक्ति .. बधायी
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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