Wednesday, June 5, 2013
भर लो उड़ान मनचाहा.....
सपनों से हो
सपनों में हो
अब तुम शामिल
मेरे अपनों में हो
देखूं बस तुझको
चाहूं बस तुझको
मांगू बस तुझको
मेरे 'माहिया'
कैसे बताउं तुझको
कि बसे हुए तुम
इन पलकों में हो
कह दूं जा के
उस खुदा से अब
कि नहीं कोई ठौर दूजा
बस मैं तुम्हारी ही
पनाहो में हूं
कर दो आजाद रूह को...जिस्म के हर बंधन से परे.....भर लो उड़ान मनचाहा.....बादलों के नाव में बैठ पार कर लो जिंदगी का समंदर.....
कि कोई है जो सिर्फ मेरा है.....
किसी के होंठो पर है फकत दिन रात एक ही नाम.....अपना नाम..... यूं लगता है जैसे फूल भरी वादियों में बिखरी हो सुरभि और उस पर पूनो का चांद...
गहरी नींद से जागने के बाद....अनंत प्रतीक्षा के बाद... रोशनी की एक किरण...मुरझाए सुरजमुखी को खिला देती है.......
तस्वीर--साभार गूगल
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3 comments:
आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
कृपया पधारें
कह दूं जा के
उस खुदा से अब
कि नहीं कोई ठौर दूजा
बस मैं तुम्हारी ही
पनाहो में हूं-------
वाह
आप तो प्रेम प्यार पर कमाल का लिखती है
प्रेम के दर्द और इसके अहसास को सजीवता से उकेर देती हैं
बहुत सुंदर
बधाई
आग्रह है
गुलमोहर------
बहुत सुन्दर <3
अनु
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