गंदुमी आकाश में
विचर रहा था एक
काले बादल का टुकड़ा
मैं चाहत की डोर से
खींचकर ले आई उसे
और टांग दिया
सिराहने
तानकर
चांदनी का चंदोवा
रहने दिया
एक झीना सा पर्दा
अपने दरमियां
मगर देर रात
पिघलने लगा बादल
बरस पड़ीं बूंदे
मैं भीगने लगी
भीगती गई
एक सुनहरी चिड़ियां की तरह
फुदकती रही
बचती रही, भीगती रही
सूखती रही
और अब
उस काले बादल ने
कर लिया है आंखों में बसेरा
मैं रोज रात
चांदनी के चंदोवे तले
करती हूं बंद आंखें
और वो बादल
बरसता रहता है रात भर......
तस्वीर--साभार गूगल
सुनो गुंजा
ReplyDeleteएक अनसुनी-अनकही गूंज
मेरी प्यास तुम्हारे छोटे से
झारे से नहीं बुझ सकती
मुझे तो
मूसलाधार बारिश की आस है
जिसके बिना
मेरी रूह तृप्त नहीं हो सकती
सुनो गुंजा
एक अनसुनी सी गूंज (डॉ.लक्ष्मी कान्त शर्मा )
हमेशा की तरह ये पोस्ट भी बेह्तरीन है
ReplyDeleteकुछ लाइने दिल के बडे करीब से गुज़र गई....
अंतस को छूती बहुत भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteबहुत उम्दा हमेशा की तरह सुंदर रचना,,,
ReplyDeleteRECENT POST : तड़प,
नमस्कार
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल बुधवार (19-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधार कर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य रखें |
सादर
सरिता भाटिया
रश्मि जी, आपकी रचनाएँ एक मखमली स अहसास लिए होती हैं जो हृदय को बड़ी कोमलता से सहला जाती हैं..
ReplyDeleteबादल का बरसना हरियाली का संकेत है ......दिल को छूती रचना ....
ReplyDeleteबेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (19 -06-2013) के तड़प जिंदगी की .....! चर्चा मंच अंक-1280 पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
आज की ब्लॉग बुलेटिन आसमानी कहर... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteएहसास का शब्दों के रूप में सुन्दर चित्रण ..
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा..
इन काले बादलों के साथ प्रेम भी चला आता है चुपके से ... जो बारिश बन के दिखारने को मजबूर करता रहता है ...
ReplyDeleteलाजवाब रचना है ...
मन की संवेदनाएं जगा देते हैं बादल !
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