Sunday, June 16, 2013

तेरी याद का इक लम्‍हा......


तेरी याद का इक लम्‍हा
मुट़ठी में बंद जुगनू जैसा है
काली अंधेरी रात में
दि‍प-दि‍प कर जलता है
बांधना चाहूं तो
कहीं दम तोड़ न दे, डर लगता है

तेरी याद का इक लम्‍हा
मुझमें पीपल की तरह उगता है
खाद-पानी की नहीं दरकार
अंधेरे, सीले से कोने में जन्‍मता है
और अपनी उम्र से पहले ही
कोई मारता है, कभी खुद मरता है

तेरी याद का इक लम्‍हा
मन में पखेरू सा कुलाचें भरता है
आकाश में जब अंदेशों के
घि‍रते हैं काले मेघ
भीगी चि‍रैया सी डरता है, और
यर्थाथ की कोटर में जा दुबकता है.....


तस्‍वीर--साभार गूगल 

10 comments:

  1. यादों के ऐसे ही लम्हों में जीवन की उम्र कट जाती है ... लम्हा खत्म नहीं होता ...

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  2. बहुत सुन्दर ....भाव्प्रबल रचना ...

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  3. सुन्दर प्रस्तुति

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  4. bhaavo ka khusurat samayojan....sunder....

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  5. बहुत सुंदर लाजबाब प्रस्तुति,,,

    RECENT POST: जिन्दगी,

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  6. अति सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति । मन को कहीँ गहरे तक छू लेनेवाली पँक्तियाँ । बधाई रश्मिजी ।

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  7. तेरी याद का इक लम्‍हा
    मुट़ठी में बंद जुगनू जैसा है
    .......बहुत सुन्दर
    जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ

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  8. बहुत सुंदर लाजबाब प्रस्तुति,

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