Friday, June 14, 2013

चाँद पकड़ने की जिद .....


चाँद पकड़ने की जिद हस्ती को उलझाती रही 
बेतरह उलझी रस्सियों को मैं सुलझाती रही !!

हमने जी ली उसी एक रात में पूरी जिंदगी
तुम काटते रहे डोर, मैं वो पतंग बचाती रही !!


मेरे रूखसार पर ढलकते रहे बेआवाज आंसू
कांपते लबों पर अपने, तब्बसुम सजाती रही !!

दर्द की हवा अटक सी गई थी मेरे सीने में
मैं सांस भरती रही, दर्द दि‍ल का दबाती रही !!

तुम्हारी हस्ती अदना से कमतर होने लगी
मैं पुरयकीन के हौसलों से तुम्हें बढ़ाती रही !!

शक के बि‍स्तर पर दम तोड़ने लगा वो रि‍श्ता
मैं ढक के चादर रात भर उसको सुलाती रही !!

चुप के जंगल में जब फ़ैल गयी भोर की ‘रश्मि’
दर्दीली रात के अफ़साने को गीतों में भुलाती रही !!



तस्‍वीर--साभार गूगल 

15 comments:

अज़ीज़ जौनपुरी said...

bशक के बि‍स्तर पर दम तोड़ने लगा वो रि‍श्ता
मैं ढक के चादर रात भर उसको सुलाती रही !!behatareen ,

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शनिवार (15-06-2013) के पहेली ! बूझो तो जाने (चर्चा मंचःअंक-1276) "मयंक का कोना" पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Jyoti khare said...

शक के बि‍स्तर पर दम तोड़ने लगा वो रि‍श्ता
मैं ढक के चादर रात भर उसको सुलाती रही !!-------

प्रेम आंतरिक के अहसास को कितनी सुन्दरता से व्यक्त किया है
वाह बहुत खूब

आग्रह है- पापा ---------

dr.mahendrag said...

शक के बि‍स्तर पर दम तोड़ने लगा वो रि‍श्ता
मैं ढक के चादर रात भर उसको सुलाती रही !!
प्रेम का मोह पाश आलिंगन को न चोदना चाहे तब भी रिश्ते की दरक मजबूर कर देती है.बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी है रश्मिजी आपने बधाई एवम आभार

dr.mahendrag said...

शक के बि‍स्तर पर दम तोड़ने लगा वो रि‍श्ता
मैं ढक के चादर रात भर उसको सुलाती रही !!
प्रेम का मोह पाश आलिंगन को न चोदना चाहे तब भी रिश्ते की दरक मजबूर कर देती है.बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी है रश्मिजी आपने बधाई एवम आभार

Rajendra kumar said...

बहुत ही बेहतरीन और सुन्दर प्रस्तुती ,धन्यबाद।

हरकीरत ' हीर' said...

शक के बि‍स्तर पर दम तोड़ने लगा वो रि‍श्ता
मैं ढक के चादर रात भर उसको सुलाती रही !!


bahut khoob ...!!

सु-मन (Suman Kapoor) said...

वाह ...बहुत सुंदर ..हर बार की तरह

Vandana Ramasingh said...

bahut badhiya rachna

रचना दीक्षित said...

चुप के जंगल में जब फ़ैल गयी भोर की ‘रश्मि’
दर्दीली रात के अफ़साने को गीतों में भुलाती रही !!

बहुत सुंदर भाव और लाजवाब प्रस्तुति.

कालीपद "प्रसाद" said...

शक के बि‍स्तर पर दम तोड़ने लगा वो रि‍श्ता
मैं ढक के चादर रात भर उसको सुलाती रही !! लाजवाब प्रस्तुति!
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Onkar said...

बहुत सुन्दर शेर

Unknown said...

वाह, कितनी खूबसूरती से दिल के दर्द को अभिव्यक्ति दे दी है आपने । हार्दिक शुभकामनाएँ

Unknown said...

वाह, कितनी खूबसूरती से दिल के दर्द को अभिव्यक्ति दे दी है आपने । हार्दिक शुभकामनाएँ

विभूति" said...

bhaut khubsurat jid....