Thursday, June 13, 2013

मि‍ट्टी............


जमीं से
उठाया 
माथे लगाया
फि‍र
बहा दि‍या
गंगा की तेज धार में

मि‍ट़टी होती है 
बहुत पवि‍त्र
मगर 
माथे पर
चंदन की तरह
रोज
नहीं सजाता कोई


तस्‍वीर--मेरे खेतों के पास की नदी 

6 comments:

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर रचना
बहुत सुंदर

प्रतिभा सक्सेना said...

मिट्टी - कितने रूप,परिणति वही !

Unknown said...

Very nice.
Vinnie
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Vinnie

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vandana gupta said...

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(15-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!

Unknown said...

सच कहा आपने रश्मिजी, मिट्टी को कोई भी रोज माथे पर नहीँ लगाता । भाव अति सुन्दर । बधाई ।