गीली लकड़ी सा इश्क तुमने सुलगाया है !
ना पूरा जल पाया कभी , न बुझ पाया है !
मेरी निगाहों ने जब चूमा तेरी पलकों को ,
खार से आंसुओं का उनमें स्वाद आया है !
दरमियान हमारे दूरी बेहिसाब, इस खातिर,
सुरमई सी सांझ का बादल पयाम लाया है !
कोरे काग़ज पर है फक़त दो महकती बूंदे,
ये उन्हीं का है ख़त, जो मेरे नाम आया है !
ग़ज़ल के बहाने तुम्हें हाले दिल सुनाना है,
मेरे हिस्से के प्यार का ये उन्वान आया है
अलसाई आंखों के दरीचों से देखा है “रश्मि” ,
आज दरिया-ऐ–सब्र में कैसे उफान आया है !
तस्वीर--साभार गूगल
10 comments:
बहुत ही सुन्दर कोमल भावपूर्ण रचना..
:-)
वाह ... बेहतरीन गजल
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (08-04-2013) के "http://charchamanch.blogspot.in/2013/04/1224.html"> पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!
बहुत खूब
बहुत खूब
वाह
'प्यास अधूरी, 'मृग-तृष्णा'का कारण बनती है|
चुभती अनाचाही पीड़ा को मन में जनती है ||
इक बेहतरीन ग़ज़ल
एक अंतहीन गहराई से निकलते सुन्दर शब्दों में पिरोई ग़ज़ल..
ना पूरा जल पाया कभी , न बुझ पाया है !..सुन्दर!!
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