Monday, May 6, 2013

इश्क ...धुआं-धुआं



गीली लकड़ी सा इश्क तुमने सुलगाया है ! 
ना पूरा जल पाया कभी , न बुझ पाया है !

मेरी निगाहों ने जब चूमा तेरी पलकों को ,
खार से आंसुओं का उनमें स्वाद आया है !

दरमियान हमारे दूरी बेहि‍साब, इस खाति‍र,
सुरमई सी सांझ का बादल पयाम लाया है !

कोरे काग़ज पर है फक़त दो महकती बूंदे,
ये उन्हीं का है ख़त, जो मेरे नाम आया है !

ग़ज़ल के बहाने तुम्हें हाले दिल सुनाना है,
मेरे हिस्से के प्यार का ये उन्वान आया है

अलसाई आंखों के दरीचों से देखा है “रश्मि” ,
आज दरि‍या-ऐ–सब्र में कैसे उफान आया है !


तस्‍वीर--साभार गूगल 

10 comments:

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत ही सुन्दर कोमल भावपूर्ण रचना..
:-)

सदा said...

वाह ... बेहतरीन गजल

shashi purwar said...


बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (08-04-2013) के "http://charchamanch.blogspot.in/2013/04/1224.html"> पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!

मन के - मनके said...



बहुत खूब

मन के - मनके said...



बहुत खूब

आशा बिष्ट said...

वाह

देवदत्त प्रसून said...

'प्यास अधूरी, 'मृग-तृष्णा'का कारण बनती है|
चुभती अनाचाही पीड़ा को मन में जनती है ||

Arvind Mishra said...

इक बेहतरीन ग़ज़ल

Tanuj arora said...

एक अंतहीन गहराई से निकलते सुन्दर शब्दों में पिरोई ग़ज़ल..

Manohar Chamoli said...

ना पूरा जल पाया कभी , न बुझ पाया है !..सुन्दर!!