हंसिए सा चांद
ये हंसिए सा चांद
जब भी मेरी छत पर आता है
जी चाहता है
हंसिए से
मेरे इर्द-गिर्द उग आए
बेमतलब के खर-पतवार
काट डालूं
और कह दूं इस चांद से
फक़त महबूब का चेहरा ही
नहीं दिखता तुझमें
तू मेरा औजार भी बन सकता है
मत समझ खुद को केवल
प्यार के काब़िल
कुछ सरफिरों का
तू हथियार भी बन सकता है......
तस्वीर--साभार गूगल
5 comments:
वाह ... बहुत खूब
तू मेरा औजार भी बन सकता है
मत समझ खुद को केवल
प्यार के काब़िल
कुछ सरफिरों का
तू हथियार भी बन सकता है......nice lines,
waah bahut khoob ...
मत समझ खुद को केवल
प्यार के काब़िल
कुछ सरफिरों का
तू हथियार भी बन सकता है......
वर्तमान का सच तो यही है
बहुत सुंदर रचना
आग्रह है पढ़ें "बूंद-"
http://jyoti-khare.blogspot.in
बहुत खूब ... अलग अंजाद से देखना शुरू किया है चाँद को ... हथियार ... एक और रूप ...
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