स्मृति के वातायन से
निकाल लाओ उन फूलों को
जिन्हें बिखरने के डर से
पीली जिल्द पड़ी
किताब के सीने में
छुपाया था कभी
* * * * *
अभी थी महफ़िल
अभी तन्हाई है
कौन जानता है
सबके होते भी तन्हा हो जाना
इतनी आसान सी बात होती है
* * * * *
एक हंसी खिली थी चांदनी रात में
अब तो चांद भी मुरझाया सा है
संग चांद के आवारा बादल
ठहरी झील की माथे पर, ठहरा नहीं करते
तस्वीर--साभार गूगल
8 comments:
khoobshurat ahshaso ko alfaz deti behatareen prastuti
बढ़िया प्रस्तुति !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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सुन्दर प्रस्तुति !!
वाह...
सुन्दर एहसास
किसी पेंटिंग की तरह शायद...
अनु
बढिया, बहुत सुंदर
बढ़िया प्रस्तुति !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
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अभी थी महफ़िल
अभी तन्हाई है
कौन जानता है
सबके होते भी तन्हा हो जाना
इतनी आसान सी बात होती है
कहना चाहुंगा तन्हाई पन कि खलिश से गुजरने वाला जरूर जनता है....
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
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