प्रियतम का गुंजलक....
बरसती चांदनी की
पंखुरियों में
प्रियतम का गुंजलक
मोगरे की खुश्बू से
मन का उपवन
महका जाता है ।
सांसों की
गरमाई से
सिक्त रखो मेरी सांसे
गेसुओं से उलझकर
कचनार बादल
इन दिनों
रस्ता भूल जाता है।
जागती रातों का
छोड़ दिया मैंने
रखना हिसाब
उचटी नींदों को
अपने होंठों से
जब से कोई पी जाता है।
तस्वीर--साभार गूगल
5 comments:
जागती रातों का
छोड़ दिया मैंने
रखना हिसाब
उचटी नींदों को
अपने होंठों से
जब से कोई पी जाता है।
अत्यंत संवेदनशील और भावनात्मक प्रस्तुति.
आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
धन्यवाद
उचटी नींदों को होंठो से जब से कोई पी जाता है। क्या उपमा है। सुन्दर।
उचटी नींदों को
अपने होंठों से
जब से कोई पी जाता है।..... सुन्दर! सुन्दर!! सुन्दर!!!
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