Friday, May 10, 2013

रेत....केवल रेत


खो गए सारे शब्‍द
देता नहीं कोई
एक आवाज भी अब
जबकि
जानता है वो
वही थी एक आवाज
मेरे जीने का संबल

वो जा बैठा है
दूर...इतनी दूर
जहां मेरा रूदन
वो सुनकर भी नहीं सुनता
ना ही
पलटकर देखता है कभी
एक बार

रेत के समंदर में
रोज उठता है
एक तूफान
मेरे वजूद को ढक लेती है
रेत भरी आंधि‍यां....
आस भरी आंखों में अब है
रेत....केवल रेत

मिर्च सी भरी है आंखों में....अब रोउं भी तो कैसे....देखो जानां....एक तेरे न होने से क्‍या-क्‍या बदल जाता है.....


तस्‍वीर--साभार गूगल 

8 comments:

अज़ीज़ जौनपुरी said...

nice lines ,रेत के समंदर में
रोज उठता है
एक तूफान
मेरे वजूद को ढक लेती है
रेत भरी आंधि‍यां....
आस भरी आंखों में अब है
रेत....केवल रेत

Dr.NISHA MAHARANA said...

sacchi bat ak ki kami ko koi poora nahi kar pata .....

वाणी गीत said...

रेत भरी आंधियों में कुछ साफ़ नजर आये कैसे :)
वास्तविक रेत की आंधियों का सामना कर रहे है इन दिनों !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

हम्म..... बहुत खूब ।

PAWAN VIJAY said...

एक तेरे न होने से क्‍या-क्‍या बदल जाता है.....

मेरी परिभाषा बदल जाती है. मौसमो के रुख बदल जाते है... और् तेरे होने से रेत भी मखमली हो जाती है....

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

अच्छी रचना
बहुत सुंदर

Onkar said...

वाह,बहुत खूब

डॉ एल के शर्मा said...

बेहद ही खूबसूरत भाव ...खो गए सारे शब्‍द
देता नहीं कोई
एक आवाज भी अब
जबकि
जानता है वो
वही थी एक आवाज
मेरे जीने का संबल...गज़ब !!