एक फूल जिसे सदियों से दबा रखा है किताबों में
तू भूल गया, मुझे याद है वो तेरी ही निशानी थी
होती है फितरत, कुछ तुम जैसे इंसानों की
प्यार पल में भुला कहते हैं, भूल-ए-जवानी थी
उजड़ी इमारत के साए में ढूंढा करते हैं एक अक्स
मिटा हर नक्श, कहती है दीवारें, वो रात तूफानी थी
हम सहरा को समंदर समझ लगाते रहे गोते ताउम्र
होश आया तो समझे, नाकाम-ए-इश्क की कहानी थी
12 comments:
smrition ko jivant karti rachna ******ya yun kah le - koyee khiza thi baharon ki,jindgi ki ranrani thi,vkt ne kya kahar dhaya,ye zulmositam ki kahani rhi
एक फूल जिसे सदियों से दबा रखा है किताबों में
तू भूल गया, मुझे याद है वो तेरी ही निशानी थी
bahut sundar rachana prastuti...
वाह !!! बहुत बेहतरीन गजब की रचना,आभार,
RECENT POST : क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता.
नाकाम इश्क की कहानी..
बहुत सुन्दर...
अनु
खूब ...बढ़िया कही
हम सहरा को समंदर समझ लगाते रहे गोते ताउम्र
होश आया तो समझे, नाकाम-ए-इश्क की कहानी थी ..
लाजवाब शेर ... बीत जाने पे ही समझ आती है .. बुत उम्दा ...
आपकी अनुमति से ,एक कवि की पंक्तियाँ दोहराना चाहूँगा
वोह भी क्या जूनून था तुम्हारे इश्क में
बेवफाई के बाद भी हम वफ़ा निभाते रहे.
नाकामिये इश्क हमें सताता रहा,
मगर फिर भी हम तुझे बुलाते रहे.
सुन्दर रचना
आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
कृपया पधारें
इश्क के अजीब मंजर की खूब सूरत पेशकश। (उजड़े इमारत)की जगह (उजड़ी इमारत) कर दें।
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
बहुत बढ़िया
बेहद शानदार शब्दों से सजी कविता | आभार
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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