अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस.....सब लोग बधाईयां देगे आज एक-दूसरे को। हक की बात करेंगे, अधिकार की बात होगी, सामाजिक बदलाव की बात होगी। पर जरा एक बार मेरी नजर से महिलाओं की हालत पर नजर डालिए न.......हम किस मुंह से मनाएं महिला दिवस ......
प्रथम दृश्य
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महिला थाना में लगभग 20 वर्षीया सांवली सी युवती, सकुचाई सी एक कोने में बैठी है। थानेदार के बुलाने पर संकोच के साथ जाकर सामने खड़ी होती है.....
बताओ, क्या बात है.....
मैडम वो भाग गया...छोड़कर मुझे ...
कौन भाग गया ?
-- मैडम, जिसके साथ मैं रहती थी......आपके ही डिपार्टमेंट में काम करता है....
कब से साथ रहती थी
मैडम, छठी क्लास से
थानेदार मैडम हैरत से उसका चेहरा घूरती हैं और फिर एक सवाल लिए मेरी आंखों में झांकती है....ये उम्र और हरकत ऐसी....फिर हमदोनों उसे देखते है.....
पूरी कहानी ऐसी है.......
रांची से सटे एक गांव में लड़की, मान लें नाम मीना है, रहती है। छठी कक्षा में पढ़ती थी तब। पड़ोस के लड़के से दोस्ती हुई। दोस्ती बढ़ती गई, उम्र के साथ-साथ। बचपन की दोस्ती प्यार में बदल गई। अब वो एक नामचीन अस्पताल में नर्स है, और लड़का पुलिसकर्मी।
प्रेम की पींगे बढ़ाते वे साथ चलते रहे। बकौल मीना-- जब 12वीं कक्षा में थी तब इमोशनल दबाव डालकर शारीरिक संबंध बनाया। कहता...मुझसे प्यार नहीं करती, इसलिए मेरे पास नहीं आती।
शादी के वायदे किए। लड़की वायदों के हिंडोले में झूलती गई। पिछले 10 वर्ष से साथ रहते थे। अब किसी और लड़की के चक्कर में उसे छोड़ गया।
बेचारी.....बेवकू़फ लड़की। आंखों में आस भरकर सोचती है कि वो आ जाएगा वापस....जिसने उसे प्यार किया और अब बदल गया। डबडबाई आंखों से कहती है...इतने साल से साथ हूं...अब कहां जाउं .....????
दूसरा दृश्य
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लगभग 35 वर्षीय महिला, बिखरे बाल..मगर होठों पे मुस्कान। देखकर कहीं से नहीं लगता कि इसके जीवन में कोई दर्द होगा या कभी-कभी विक्षिप्तता का भी दौरा पड़ता होगा।
गरीब...अकेली लड़की, मगर शौक बड़े-बड़े। एक दिन घूमने का मन किया.....मनमौजी....टिकट खरीदी और बैठ गई रेल में। साथ में संग एक सखी। पहुंची दिल्ली।
जब तक जेब में पैसा था, सब ठीक रहा। खत्म ...तो फांकाकशी...
शायद पहले से ही मानसिक रूप से थोड़ी कमजोर रही होगी या दुनियादारी में
कैसी हो..;क्या हुआ तुम्हारे साथ.....
कहती है.....रात में घूम रही थी दिल्ली में.....कुछ लोग मिले....कहा..चलो मुर्गा-भात खिलाते हैं...
भूख लगी थी.....चल पड़ी...ले गए बहुत दूर
बहुत सारे लोग थे......गंदा काम किया दीदी मेरे साथ, बहुत बुरे लोग हैं वहां....
मैं भाग आई...वापस..अपने झारखंड
कहीं नहीं जाउंगी..कभी नहीं जाउंगी....सब बुरे लोग होते हैं
एक आश्रम में आसरा लिया है उसने। उस घटना के बाद संतुलन खो बैठी। पेट में बच्चा लिए आई थी वापस। एक फूल सी बच्ची को जन्म दिया उसने। प्यार से पाल रही थी। तीन साल की हो गई थी बच्ची। मगर दिमाग ने साथ नहीं दिया उसका। बच्ची बीमार पड़ी। कभी बेहद प्यार करती थी, कभी पीटने लगती थी। शायद सही देखभाल के अभाव ने जान ले ली बच्ची की।
जब पूछा...कहां तेरी बच्ची......आंसू डबडबा आए आंखों में। मर गई दीदी....मेरी प्यारी बच्ची। पिता का नाम पूछने पर हिकारत से कहती है.....होगा कोई...क्या पता।
बुरे लोग, बुरी दुनिया...मेरी सहेली को तो सड़क से उठा लिया था। मुझे व सब लड़कियों को अपने घर में ही रहना चाहिए।
मगर बेचारी.....अपने घर का पता ही भूल चुकी है। कहां जाएगी ??
आलेख 'दैनिक लोकसत्य' में 8 मार्च 2013 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित
तस्वीर--साभार गूगल
8 comments:
:-(
जबतक ऐसी घटनाए होती रहेगी,,,महिला दिवस मनाने से क्या फायदा,,,,
Recent post: रंग गुलाल है यारो,
वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.
Aaj Sonipat men Soniaji kah rahin haen in ghatnaon se sir jhuk jata hae,par deshwaypi ghatnaon ke rokne ke liye kya kar rahen kaen?jab tak kade kanoon nahin banegen, unko lagoo karne ki dhradh ichha nahin hogi tab tak sir yun hi jhukta hi rahega,Sheelaji dwara delhi men in do rapiston ko parole pae chodne ki sipharish,sonia ka sir jhuka rahi haen ya utha rahi hae? KEWAL EK DIN MAHILA DIWAS MANA KAR MAHILAON KO HUM SANMAN NAHIN DE SAKTE.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !
सादर
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !
सादर
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
मर्मस्पर्शी
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