Sunday, March 17, 2013

नहीं सूखता कभी बीज प्रेम का.....

बोझल हुई जाती आंखों में 
आते हैं नींद के झोंके
कच्‍ची सी निंदि‍या के बीच
घेर लेता है एक सपना

सपने में होता है वो ही चेहरा
जि‍सकी याद भुलाने के लि‍ए
खुद से कि‍ए थे वादे
और कई मजबूत इरादे

हंसता हुआ वो कहता है
नहीं सूखता कभी
बीज प्रेम का
बस तनि‍क मुरझाता है

शब्‍दों के जहर से
जरा सूख सा जाता है
सींचो चुल्‍लू भर प्रेम जल से
तुरंत दम हरा हो जाता है

आखि‍र होता क्‍या है प्रेम..
जो पास होता है, वो दूर होता है
और छोड़ कर जाने वाला ही
क्‍यों इतना दि‍ल के करीब होता है....


तस्‍वीर--साभार गूगल 

7 comments:

पूरण खण्डेलवाल said...

प्यार कि सटीक परिभाषा आज तक कोई नहीं दे पाया है !!
सुन्दर प्रस्तुति !!

Unknown said...

बहुत खूब , सुन्दर अभिव्यक्ति , सटीक परिभाषा

Jyoti khare said...

हंसता हुआ वो कहता है
नहीं सूखता कभी
बीज प्रेम का
बस तनि‍क मुरझाता है----
bahut sunder----pyar ka apna alag sansar hai

Unknown said...

vakayee me ak bacche ki tarah shaitani karta hai aur kabhi vykt to to kabhi avykt,kabhi murt to kabhi amurt,mar hi nahi sakta ,or yadi par gya to vo chalava hi raha hoga,pyar nahi

dr.mahendrag said...

प्रेम का यही उसूल है , और ऐसा ही होता है.
अच्छी अभिवयक्ति

Madan Mohan Saxena said...

बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी .बेह्तरीन अभिव्यक्ति.शुभकामनायें.

डॉ एल के शर्मा said...

सपने में होता है वो ही चेहरा
जि‍सकी याद भुलाने के लि‍ए
खुद से कि‍ए थे वादे
और कई मजबूत इरादे...बहुत सुंदर भावनायें