Sunday, March 10, 2013

जलते कपूर सा मेरा प्रेम....


दीप्‍त..प्रज्‍जवलि‍त
पान के पत्‍ते पर
जलते कपूर सा मेरा प्रेम
जो ति‍रना चाहता है
अंति‍म क्षण तक
जलना चाहता है

और तुम
चंचल नदी की तरह
मुझे डुबोने को आतुर

क्‍या अल्‍पजीवी प्रेम भी मेरा
तुम्‍हें स्‍वीकार नहीं.......


तस्‍वीर--छठ पर्व के समय दीप प्रज्‍जवलि‍त करते परि‍जन

7 comments:

Onkar said...

शानदार

रचना दीक्षित said...

सुंदर प्रस्तुति.

महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ.

vandana gupta said...

क्‍या अल्‍पजीवी प्रेम भी मेरा
तुम्‍हें स्‍वीकार नहीं.......

क्या कहूँ अब?

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

सब स्‍वीकार है। निराशा के भ्रमजाल से मुक्‍त हों, यह कामना है।

Anonymous said...

महाशिव रात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ

Unknown said...

निश्चित रूप से कवित्त मुझे आपसे सीखना होगा। आज से आप मेरी गुरू!

डॉ एल के शर्मा said...

क्‍या अल्‍पजीवी प्रेम भी मेरा
तुम्‍हें स्‍वीकार नहीं.......बहुत खूब !!