Wednesday, February 6, 2013
चंद अशआर
1.दिन ढला...रात हुई, बाट जोहती आंखे
पल में सौ बार मरूं ,क्या अब भी न आओगे
नेह लगाकर परदा किया, आंखों में तो क्यों था समाया
प्रेम की पीर बड़ी गहरी, आज सांझ फिर ठुकराओगे...
2.ज़ब्त का हुनर आता है तुम्हे
"झरना" हूं, रफ्तार कैसे रोकूं..
3.कहां से आता है इतना नमकीन पानी
कहीं इन आंखों में समंदर तो नहीं उतर आया ?
4.ज़माने भर की रानाईयां कद़मबोसी करे
हम आपका अक्स आंखों में लिए जाते हैं...
5.नाप ले उंचाईयां...आएगा एक दिन ज़मीन पर
इतना भी न इतरा...खुमार-ए-इश्क है, उतर जाएगा..
6.जाती हुई ठंड
लौटकर चली आई फिर से
गया हुआ मीत
क्यों नहीं पलट आता फिर से..
तस्वीर--साभार गूगल
गहन ...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteशुभकामनायें ...
उमड़ घुमड़ करते जज्बात-
ReplyDeleteक्या बात है क्या बात है क्या बात ||
कहा से आता है यह नमकीन पानी...... सुंदर अभ्व्यक्ति है सा
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब
ReplyDeletebahut khoob...umda
ReplyDeletehttp://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post.html
अलग अलग मूड को सहेजा है इन पंक्तियों में ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteकुछ अलग सी पोस्ट सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी
ReplyDeleteदिन ढला...रात हुई, बाट जोहती आंखे
ReplyDeleteपल में सौ बार मरूं ,क्या अब भी न आओगे
एक अलग सी भावना को जताती बात जोहती रचना .